Mahamana Madan Mohan Malaviya

Mahamana Madan Mohan Malaviya
Speeches & Writings

स्वराज्य की कल्पना

 

समय के हेर-फेर से बहुत-सी बातें बदल गयी हैंभारतवासी इतने हतवीर्य हो गये हैं कि उन्हें अपने प्राचीन गौरव, प्रतिष्ठा और मर्यादा का बिलकुल ध्यान नहीं हैंपहले हमारे देश की राजपद्धति क्या थी और सामाजिक और व्यावहारिक ज्ञान में कितने ऊंचे थे, वे इस बात अब बिलकुल भूल गये हैं, परन्तु उनके प्राचीन धर्मग्रन्थ उनकी सभ्यता, ज्ञान और राजनैतिक कार्यक्रम से भरे पड़े हैंजब उनको उठाकर देखा जाता है तब विदेशी विद्वानों की आँखें खुल जाती हैंबहुत-सी दुराग्रही और हठी लोग जो यह कह बैठते हैं कि भारतवासियों को स्वराज्य की कभी कल्पना ही उत्पन्न नहीं हुई, इस बात का ज्ञान उन्होंने पश्चिमी सभ्यता के ज्ञान के साथ ही सीखा है, उनके अवलोकनार्थ वैदिक ग्रन्थों के कुछ प्रमाण नीचे दिये जाते हैं, जिनको देखकर विवेकी पुरुष इसको भली-भांति जान सकते हैं कि भारतवासियों में स्वराज्य की कल्पना नयी नहीं, वरन बहुत प्राचीन समय की है


() शतपथ ब्राह्मण में यजुर्वेद के एक मन्त्र का प्रमाण देकर यह सिद्ध किया गया है कि राजा के अधिकार अनियंत्रित और अनियमित होने चाहिए, इससे यह बात स्पष्ट विदित होती है कि राजा कभी स्वतन्त्र रहेउसे प्रजा से मिलकर उसके सुख के लिए उसी से अनुकूल कार्य करना चाहिएस्वराज्य का तात्पर्य भी यही है कि प्रजा की इच्छानुकूल देश का शासन सुखकारी हो


() वेद के मन्त्रों में बहुत-से स्थलों पर इसका प्रतिपादन किया गया है कि राजा को प्रजा की मनोवृत्ति को आकर्षित करना चाहिए, जिसके कारण राजा कभी पदच्युत हो सकेइसका तात्पर्य यही है कि यदि राजा अपनी प्रजा को प्रसन्न नहीं रख सकता, तो वह पदच्युत कर दिया जाया करता थाअर्थात प्रजा को इस बात का अधिकार था कि यदि राजा हमारी मनोवृत्ति को समझ सके, हमारे सुख के लिए हमें साधन इकठ्ठा कर दे, तो हम ऐसे अनधिकारी राजा को राज-पद से च्युत कर देंपश्चिमी सभ्यता-युक्त स्वराज्य की पूरी-पूरी झलक इस वेद-वाक्य से पायी जाती हैप्रजा की स्वतन्त्रता और राजा को स्वतः अपने कर्त्तव्य कर्म पर दृढ़ रहने का इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिये


() वेदों में ऐसे भी बहुत से मन्त्र हैं जिनमें इस बात का विवरण स्पष्ट रूप से दिया है कि राजा को अपना सारा कार्य अपने मन्त्रिमण्डल की सहायता से करना चाहिये और मन्त्रिमण्डल प्रजा की इच्छानुसार नियत होऐसा करने से कभी राजा और प्रजा में द्वेष उत्पन्न नहीं हो सकताइस पर से यह बात स्पष्ट है कि प्राचीन समय में भारत में राज्य-पद्धति उसी ढंग की थी जिस प्रकार आजकल यूरोप और अमेरिका में स्वराज्य का ढंग हैअगर भारतवासियों की स्वराज्य की कल्पना नवीन होती, तो उनके धर्मग्रन्थों में जिन बातों का उल्लेख है, वे सब नियमबद्ध हैंसृष्टि की उत्पत्ति, प्रलय और पूजा-पाठ इत्यादि सब बातों के लिए उन्होंने नियम बना रक्खे थे, फिर भला वे पद्धति को अमियमित रूप से कब चलने देते


() प्रजा का मनोरंजन करने से ही राजा की पदवी प्राप्त होती थी- बहुत-से वेद-वाक्यों में इस बात का विवरण दिया हुआ है


() लोक-मत का ध्यान रखने से ही सारी प्रजा राजा का अनुकरण करती है- इस प्रकार के मन्त्रों पर से पाया जाता है कि राजा का अधिकार प्रजा के मतानुसार मर्यादानुकूल होता था


() सामान्य सभा से विशिष्ट सभा और विशिष्ट सभा से उच्च सभा तैयार होती थीइस पर से इस बात का पता चलता है कि सभासदों की मनमाने तौर पर नियुक्त करने का राजा को अधिकार थानियमानुसार प्रजा की सम्मति से सभासदों का चुनाव उस समय होता था


() राजा के यहां तीन प्रकार की सभाओं का वर्णन वेद-मन्त्रों में साक्षात और आलंकारिक रूप से पाया जाता है, जिस पर से यह बात सिद्ध है कि सभातन्त्री राज्य-व्यवस्था आर्य लोग देश का शासन करते थे


() सभासदों का अपना मत स्पष्ट रूप से राजा पर प्रगट करने का अधिकार है- इस प्रकार के मन्त्रों का वेदों में स्पष्ट विधान है


() विद्या और कला-कौशल की उन्नति सभा की अनुमति से राजा को अपने राज्य में करनी चाहिये- इस प्रकार का तात्पर्य भी वेद-मन्त्रों से प्रगट होता है


(१०) राजा को अपने तई लोक द्वारा नियुक्त अथवा लोक द्वारा सम्मत मानना चाहिए, इस विषय का भी वेद-मन्त्रों में विधान है


इन सब बातों पर से यह बात सहज में सकती है कि वैदिक काल में आर्य लोगों का स्वराज्य से क्या मतलब था और इससे यह बात भी स्पष्ट है कि स्वराज्य की कल्पना आर्य लोगों को यूरोप के लोगों की देखा-देखी नहीं उत्पन्न हुई, वरन यूरोपवासियों ने स्वराज्य करने की पद्धति को इसी देश से जाना और सीखामनु महाराज ने राज-प्रकरणों में जितना उपदेश दिया है वह सब स्वराज्य-सम्बन्धी हैउसमें सभासदों को नियुक्त करने का विधान, राजा के अधिकार, मन्त्रिमण्डल की मर्यादा इत्यादि सब बातों का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया हैहम नहीं समझते कि मिस्टर मार्लो, मिंटो और जाक्सन इत्यादि के कथनानुसार लोक-नियंत्रित राजसत्ता से भारतवासी अपरिचित हैं और इस बात का नाहक हठ करते हैंभारतवासियों को स्वराज्य देना अथवा देना यह तो उनकी इच्छा और भारतीयों की शक्ति पर अवलम्बित है, परन्तु यह कहना कि वे लोग स्वराज्य से ही अपरिचित हैं उनको स्वराज्य के अधिकार देना निरुपयोगी है, कितनी बड़ी भूल हैभारतवासियों में चाहे अभी स्वराज्य करने की योग्यता हो अथवा हो, परन्तु उनके पूर्वज स्वराज्य के नियमों से ही परिचित थे वरन वे स्वराज्य-रुपी कल्पवृक्ष की छाया में बैठे हुए सारे संसार में सबसे अधिक श्रेष्ठ और विद्वान गिने जाते थे आज उन्हीं की सन्तान को कहा जाता है कि वे स्वराज्य के योग्य नहीं हैं उनको स्वराज्य देना निरुपयोगी है यह कितने बड़े आश्चर्य की बात है अब भी यदि भारतवासी अपने पूर्वजों का अनुकरण करके सारे संसार की यह बात करके दिखला दें कि वे स्वराज्य के कहाँ तक अधिकारी हैं तो उनके लिए यह बात बड़े लज्जा की है ब्रिटिश लोग चाहे समझते हों अथवा समझते हों, परन्तु योग्यता और अयोग्यता की परीक्षा तो समय पर ही होती है जिस काम पर भारतवासियों को नियुक्त किया गया, उस काम को करने से वे कभी विमुख हुए यथासाध्य उन्होंने कार्य को पूरा ही करके छोड़ा सरकारी सेनविभाग में जो कुशलता देश के वीर सिपाहियों ने दिखलायी थी, क्या वह किसी पर अप्रकट है


अब फिर भारतवासियों में स्वराज्य की कल्पना का प्रार्दुभाव हुआ है ईश्वर यदि इनकी सब जागृति को बनाये रखे और ब्रिटिश सरकार का अनुग्रह और कृपा इन पर बनी रहे, तो एक समय ऐसा आयेगा जब इनको स्वराज्य के अधिकार अवश्य प्राप्त होंगे


(मार्गशीर्ष-कृष्ण २, सं० १९६४)

Mahamana Madan Mohan Malaviya