Mahamana Madan Mohan Malaviya

Mahamana Madan Mohan Malaviya
Speeches & Writings

देशभक्ति का धर्म

 

जो लोग शुद्ध मन से प्राणियों का परम कल्याण चाहते हैं, उनको उचित है कि वे उनको धर्म का उपदेश दें और उन्हें धर्म के मार्ग में लगावें सुख का मूल धर्म ही है मनुष्यों का परम धन धर्म ही है संसार की समस्त सम्पत्ति और भोग-पदार्थ मिलकर मनुष्य को वह सुख नहीं दे सकते, जो धर्म देता है जितने दुःख और क्लेश मनुष्य को सताते हैं; उनके लिए एक सिद्ध औषध धर्म ही है काम, क्रोध और लोभ की विकराल ज्वाला में झुलसने से मनुष्य को धर्म ही बचाता है, उनसे उतपन्न हुए दोष और पाप की यातना से मनुष्य की यही रक्षा करता है काम की वह विशाल ज्वाला जो बिना धूम के मनुष्यों को जलाती है, क्रोध का वह विकट बवंडर जो मनुष्य की बुद्धि को हर कर उससे न करने योग्य काम को कराता है, लोभ की यह विकराल तृष्णा जो मनुष्य को मलिन से मलिन घृणा के योग्य स्थानों में घसीटती है, उस मनुष्य को क्लेश नहीं देते जो अपने धर्म को जानता और उसके आचरण में सदा सावधान रहता है मनुष्यों पर, देश में व समाज में, जितनी विपत्तियाँ आती हैं उनका मूल कारण धर्म से विमुख होना ही होता है दीनता, दरिद्रता, कायरता, आपस में द्रोह, एक-दूसरे की डाह, दूसरों की वस्तु को भोगने की चाह, झूठ, कपट, व्याभिचार आदि जो दोष, मनुष्यों की तथा समाज की शक्ति को घटाते और उनको दूसरों का दास बनाते हैं, वे सब धर्म से विमुख होने के परिणाम हैं और जैसा धर्म से विमुख होने से इन सब दोषों में पड़, हम लोगों ने अपना राज-पाट, धन-धर्म गंवाया है, वैसा ही धर्म के आचरण में दृढ़ होने से, और अभय, दम, शम, सत्य, तेज, धैर्य, अद्रोह, परस्पर प्रीती, संतोष आदि के उपार्जन करने ही से हम लोग देश और समाज का उद्धार कर, इन्हें अपने पुराने गौरव और विभव को पहुँचा सकता है देश और समाज की दशा सुधारने के लिए आजकल सहस्त्रों परोपकारी पुरुष जतन कर रहे    हैं हम लोग स्वयं भी अपनी संकल्प शक्ति के अनुसार उस जतन में सहायता पहुँचाते हैं किन्तु हम जानते हैं कि जब तक हमारे देश-बान्धवों के चित में कर्तव्य का ज्ञान दृढ़ रीति से नहीं जम जायगा तब तक उनकी दशा का सुधार, पहले तो ठीक-ठीक होना कठिन है, दूसरे यदि हो भी तो उसका स्थायी होना असम्भव है और वह कर्तव्य का ज्ञान बिना धर्म का ज्ञान और उसमें विश्वास हुए हो नहीं सकता बिना धर्म के निष्ठा हुए जो लोग देश के हित वा किसी और उपकार के काम को करते हैं, वे प्रायः यश की लालसा से वा किसी और स्वार्थ के लोभ से करते हैं और ऐसे लोग उन कामों में तब तक जतन करते हैं, जब तक उनका स्वार्थ सिद्ध न हो जहां अपना प्रयोजन सिद्ध हो गया और मान बढ़ गया, तहां उनका अभिमान बढ़ने लगता है, और परोपकार करने का उत्साह कृष्ण-पक्ष के चन्द्रमा के समान घटने लगता है इसके अतिरिक्त ऐसे लोग किसी बड़े काम के करने में जो क्लेश और कठिनाइयां होती हैं, उन्हें देखकर भी उत्साह छोड़ देते हैं किन्तु जिस मनुष्य को अपने धर्म में विश्वास है, और कर्तव्य का ज्ञान है, जो धर्म-बुद्धि से प्राणियों के हित-साधन तथा देश और समाज की दशा के सुधार के लिए जतन करता है, वह बिना उस उद्देश्य के सिद्ध हुए कभी उस काम से विरक्त नहीं होता कितने ही संकट और विघ्न उसके मार्ग में क्यों न आवें, कितने ही शारीरिक-मानसिक क्लेश, समय और धन की हानि उसको क्यों न सहनी पड़े, वह अपने कर्तव्य से मुख नहीं मोड़ता, कोई स्तुति करे या निन्दा, लाभ हो व हानि, सुख हो व दुःख, वह जिस काम का करना अपना धर्म समझता है उसके करने में यथाशक्ति जतन करता ही जाता है, बार-बार परिश्रम विफल होने पर भी वह धीरता और उत्साह को नहीं छोड़ता, क्योंकि वह जानता है कि उसको कर्तव्य कर्म करने ही मात्र का अधिकार है, उसका फल पाना या न पाना उसके अधीन नहीं है ऐसे-ऐसे धर्मशील पुरुष न अपने से अधिक गुण वालों से डाह करते, न अपने से कम गुणवालों का अपमान, न अपने समान गुण के लोगों की स्पर्धा करते हैं, सबके साथ शुद्ध प्रीती और बन्धुता से वर्तते, सबके हित के लिए परिश्रम करते हैं ऐसे पुण्यात्मा जनों से पूर्व-समय में जगत का उपकार हुआ है और ऐसे ही लोगों से इस समय में भी देश का उद्धार होगा योरोप और अमेरिका में भी जो देश के बड़े-बड़े हितकारी और प्रसिद्ध पुरुष हुए हैं, जिन लोगों ने धर्म का उद्धार और संशोधन किया है, वा जिन्होनें अन्यायियों को हरा कर युद्ध से देश की स्वतंत्रता और कीर्ति बढ़ायी है, वे भी प्रायः ऐसे ही पुरुष थे जर्मनी में ल्यूथर, इंग्लैंड में नेलसन और क्रामवेल, फ्रांस में नैपोलियन, अमेरिका में वाशिंगटन, इटली में मेजिनी, गैरीबाल्डी आदि इसी श्रेणी के पुरुष थे, जो कर्तव्य के करने में बड़े दृढ़ थे, जिसके कारण आज तक जगत में उनके नाम का सम्मान बना है


हमको यह लिखते अत्यन्त खेद होता है कि हमारे देश में धर्म और कर्तव्य की दृढ़-बुद्धि से देश व समाज के हित के लिए जतन करने वाले पुरुषों की संख्या अभी बहुत थोड़ी है और यही कारण है कि यद्धपि देश हित की चर्चा बहुत सुन पड़ती है, तथापि उतना कार्य नहीं दिखता लोग सभा-कमेटी करने के उत्साह में आकर बड़े-बड़े कामों को प्रारम्भ कर देते हैं, किन्तु चार ही दिन में उनका सब उत्साह और श्रद्धा वेग के समान घट जाती है पिछले तीन वर्षों में यहां सैंकड़ों सभा-समाजें स्थापित हुई, जिनकी स्थापना के समय बड़ा प्रचंड उत्साह प्रगट किया गया था और जिनसे बड़ी-बड़ी आशाएं की गई थीं किन्तु कोई दो महीने में और कोई दो बरस तक जी कर मर मिटी दो-चार सभाओं में मेम्बर कुछ उत्साह से आये, उसके पीछे उनका सब उत्साह न जाने किस लोक में चला गया विदेशी लोग हमारी इस आरम्भ शूरता पर हंसते हैं, विद्वान देश-हितैषी करुणा करते हैं, किन्तु यह तब तक दूर न होगी जब तक हमारे देश-बान्धवों को अपने धर्म का ज्ञान और उसमें दृढ़ विश्वास न होगा अतः इसके लिए जतन करना सब सच्चे देश-हितैषियों का परम धर्म है


(आश्विन शुक्ल ४, सं० १९६४)

Mahamana Madan Mohan Malaviya