Mahamana Madan Mohan Malaviya

Mahamana Madan Mohan Malaviya
Speeches & Writings

लोकमान्य तिलक

 

लोकमान्य तिलक एक बहुत असाधारण व्यक्ति थे उनका जीवन उपदेशमय और मनुष्यों में विद्या का प्रेम, देश-भक्ति, धैर्य और उत्साह बढ़ाने वाला है भृतहरि का नीचे लिखा हुआ यह प्रसिद्ध कथन उनके विषय में प्रचुर अंश में घटता है-


विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा

                                 सदसि वाक्यपटुता युधि विक्रमः

यशसि चामिरूचिकर्यमन श्रुतौ

                                प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ।।


लोकमान्य को युद्ध के प्रबन्ध का अवसर नहीं मिला नहीं तो जैसा अनन्य देशभक्त गोपालकृष्ण गोखले ने कहा था, लोकमान्य उसमें भी निपुण पाये जाते लोकमान्य तिलक अनेक अंश में एक आदर्श पुरुष हुए हैं और मैं चाहता हूँ कि देश के भविष्य की आशा के मूल, हमारे होनहार नवयुवक लोकमान्य के जीवन के उपदेशों को हृदय में धारण करें और बाल्यावस्था में ही हिन्दुस्थान और हिन्दू जाति की सेवा का महान व्रत धारण कर सब प्रकार से अपने को उसके योग्य बनावें


यहाँ पर लोकमान्य-सम्बन्धी केवल दो-चार बातों का सामान्य रीति से देश और समाज का हित चाहने वाले पाठकों का, और विशेषकर  विद्यार्थियों का ध्यान खींचना चाहता हूँ मैं चाहता हूँ कि वे इस बात को ध्यान में लावें कि तिलक के पिता गंगाधरराव जी ने संस्कृत और गणित में स्वयं अपने ही प्रयत्न से प्रवीणता प्राप्त की थी यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि आरम्भ में उनको केवल पाँच रुपये महीने वेतन मिलता था और बहुत दिनों तक उनको दरिद्रता का सामना करना पड़ा था जो विद्यार्थी आज निर्धन हैं, उनको इस बात को विचार कर ढाढस ग्रहण करना चाहिए और यह स्मरण करना चाहिए कि एक नहीं, असंख्य धनहीन माता-पिताओं की सन्तानें दृढ़ अव्यवसाय से विद्या और चरित्र का धन संग्रह कर संसार में यशस्वी और लोक-सेवा मने निरत होकर लोकमान्य हुए हैं और भविष्य में भी हो सकते हैं


इसीलिए भगवान मनु का उपदेश है-


नात्मानमवमन्येत पूर्वाभिरसमुद्धिभिः

आम्रत्योयन्तीमातिष्ठेनैनां मन्येतुदुर्लभास ।।


अर्थात, 'पहले ही दुःख और दरिद्रता का सामना करना पड़ा एवं सुख और सम्पत्ति नहीं मिली, इस कारण अपना अनादर नहीं करना चाहिए वरन जब तक मृत्यु न आवे तब तक यत्न करते जाना चाहिए और समृद्धि को, सम्पत्ति को दुर्लभ नहीं मानना चाहिए ।'


दूसरी बात जिस पर विद्यार्थियों को ध्यान देना चाहिए, यह है कि तिलक अधीर विद्यार्थियों की तरह, कुसमय में पढ़कर, रात का दिन एक नहीं किया करते थे किन्तु जब पड़ने बैठते थे, उस समय यदि कोई उनके कान के पास नगाड़ा भी पीटने लगता, तो वे उधर ध्यान तक न देते थे


तीसरी बात यह है कि कालेज में प्रवेश करने के समय उनका स्वास्थ्य बिगड़ा हुआ था, किन्तु उन्होंने पहले ही वर्ष में नियम से व्यायाम कर उसको सुधार लिया प्रातः काल का समय वे अखाड़े में कुश्ती लड़ने या नदी में तैरने में बिताते थे इस रीति से उन्होंने अपना स्वास्थ्य ऐसा बना लिया था कि समस्त जीवन उन्होंने उसका लाभ उठाया


चौथी बात यह कि जब तिलक कालेज में ही थे, तभी उन्होंने यह संकल्प कर लिया था कि वे देश और समाज की सेवा में अपना जीवन अर्पण करेंगे धन-उपार्जन करने की अभिलाषा ने भी उनको नहीं सताया जो लोग अपना कर्तव्य करते हैं, उनको यश स्वयं ही ढूँढ लेता है


पांचवी बात यह कि कालेज के दिनों से लेकर अन्त तक उनकी देशभक्ति, देश के उद्धार की अभिलाषा और प्रयत्न, एक रस बने रहे किसी प्रिय या अप्रिय घटना से उसमें अन्तर नहीं पड़ा देश ही उनका सर्वस्व था


छठी बात यह है कि देश की सेवा से भी अधिक प्रबल उनका शास्त्र का व्यसन था शास्त्र का गौर सद्ग्रन्थों का अभ्यास करते रहना देशभक्त का परम धर्म है इसलिए ऋषियों ने यह नियम कहा है- अहरहः स्वाध्यायमश्रीयीत प्रतिदिन वेद-वेदांगों, उपवेदों तथा अन्य उत्तम ग्रंथों का अध्ययन करते रहना चाहिए जैसा सम्पत्ति में, वैसा ही विपत्ति में- लोकमान्य का शास्त्र का व्यसन एक सामान बना रहा


लोकमान्य की राजनीतिक शुद्धि और नीति के सम्बन्ध में यहाँ पर मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि अंग्रेजों की नीति को जैसा वे समझते थे, वैसा और नेताओं में से बहुत कम पुरुषों ने समझा था


सबसे बड़े दो गुण, निर्भयता और धैर्य, लोकमान्य में प्रचुर मात्रा में थे । 'स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है'- ये स्वतन्त्र जनोचित भाव उसी के मुख से निकल सकते हैं, जिसका हृदय भय से कभी दुर्बल नहीं हुआ और जिसके धैर्य को प्रबल से प्रबल पवन भी विचलित नहीं कर सकता लोकमान्य को पुत्र का वियोग हुआ, स्त्री का वियोग हुआ, ऋण का संकट हुआ, तीन बार जेल जाना पड़ा और अनेक विपत्तियाँ भी आयीं- किन्तु उनका धैर्य नहीं डिगा


मुझे नीचे लिखे श्लोक स्मरण आते हैं:


पुत्रदारंश्रीयुक्तस्य वियुक्तस्य धनेन वा

भग्नस्य व्यसने कृच्छे, श्रुतिः श्रेयस्करी नृप ।।

चलन्ति गिरयः कामं युगान्तपवनहताः

क्रच्छेपि न चलत्येव श्रीराणां निश्चलं मनः ।।


मैं आशा करता हूँ कि लोकमान्य के चरित्र को पढ़कर और उनके गुणों को मनन कर हमारे लाखों भाई और बहिन परमात्मा से प्रार्थना करेंगे कि 'देश में बाहु-बल, विद्या-बल, धर्म-बल से सम्पन्न उनके समान देशभक्त आयें, सन्तानें प्रचुर संख्या में हों और देश को स्वतन्त्रता के मान और विभव से फिर से विभूषित करें


(अगस्त ६, १९३५)

Mahamana Madan Mohan Malaviya