Mahamana Madan Mohan Malaviya

Mahamana Madan Mohan Malaviya
Speeches & Writings

स्वदेश-भक्ति

 

नेपोलियन के समय इंग्लैंड और फ्रांस में, बहुत ही भयंकर वैर-भाव उत्पन्न हो गया थानेपोलियन अपने जहाजों को लेकर कब इंग्लैंड पर चढ़ाई कर देगा, इस बात की इंग्लैंडवासियों को सदैव चिन्ता बनी रहती थीअतएव नेपोलियन पर देख-रेख रखने के लिए इंग्लिश चैनल में एडमिरल कॉलिंगवुड नियत किये गयेकॉलिंगवुड बहुत बड़े सज्जन  गृहस्थ थेफेलगार की भयंकर लड़ाई में जिसमें वीर पुरुष नेलसन ने बहुत बड़ा नाम पाया था, कॉलिंगवुड भी उसी की बराबरी और योग्यता का पुरुष था परन्तु इतना बड़ा वीर फौजी अफसर होने पर भी, वह बहुत ही शान्त और मिलनसार थाउसकी ज़िन्दगी का बहुत-सा हिस्सा समुद्र के किनारे पर ही व्यतीत हुआअपने कुटुम्बियों, अपनी स्त्री और अपने बाल-बच्चों से मिलने-जुलने का उसे बहुत ही कम अवसर मिलता था परन्तु अपने स्नेहियों और कुटुम्बियों से मिलने के दुःख को वह स्वदेश सेवा के निमित्त बड़े उत्साह और धैर्य के साथ सहन करता थाकभी-कभी इस पराधीनता के कारण उसका चित्त बहुत ही खिन्न हो जाताइंग्लैंड और फ्रांस के बीच समुद्र के किनारे, अपने देश की रक्षा के लिए अपना कर्तव्य कर्म करते हुए उसे एक युवा सैनिक, कैदी के तौर पर, हाथ लगाइस युवा का पिता इसकी बाल्यावस्था में ही स्वर्ग सिधार गया था, इस कारण पितृ-सुख किसे कहते हैं, इस बात का उसे ज्ञान तक था, परन्तु युवा के पिता और एडमिरल कॉलिंगवुड से बहुत स्नेह थाइस कारण कॉलिंगवुड इस युवा से बहुत-ही-प्यार करते और किसी प्रकार की तकलीफ उसे पहुँचने देते१८ वर्ष का तरुण फ्रैंच सैनिक कैद में एकांतवास के कारण बहुत ही दुखित हो गयाअतएव उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया


एक दिन वह इसी प्रकार की कल्पना में व्यग्र था कि इतने में एडमिरल कॉलिंगवुड वहाँ पहुँचे और उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा- बेटा! तुमको अभी इस क़ैदखाने में अभी एक महीना भी नहीं हुआ कि तुम इतना दुःख प्रगट करते होफिर मुझे क्या करना चाहिए? मैं तैंतालीस वर्ष से इस जेलखाने में पड़ा हूँयह बात मैं झूठ नहीं कहता, मैं इस समुद्र के किनारे तुम्हारे ही समान कैदी हूँइस समुद्र की लहरें ही लहरें दिखायी पड़ती हैंलहरों के सिवाय और कुछ भी दिखायी नहीं पड़ताऔर लहरों की आवाज के सिवाय कुछ सुनायी पड़ता हैइन लहरों से जो फेन उड़ता है, मानो उसी से मेरे बाल यहाँ सफेद हुए हैं और उसी के तुषार से यह मेरी कमर टेढ़ी पढ़ गई हैमेरा जन्म इस समुद्र के किनारे पर ही व्यतीत हो गयास्वयं इंग्लैंड देश का भी मुझे बहुत ही कम स्मरण हैमैं अपने देश का चित्र (नक्शा) मात्र जानता हूंयद्धपि मैंने अपने देश को बहुत अच्छी तरह देखा नहीं है तो भी मुझे उसपर अतिशय-भक्ति है और एक सेवक-गुलाम के तौर पर उसकी सेवा कर रहा हूँपरन्तु स्वदेश के लिए ऐसा ही करना पड़ता हैइसके लिए और क्या इलाज है? इस प्रकार स्वदेश-प्रेम के बन्धन में पड़ना, तुम्हारे लिए एक बहुत बड़ी इज्जत हैमेरी ओर देखो, और इससे शिक्षा ग्रहण करोबहुत जल्द मैं इस बात का प्रबन्ध करूँगा कि तुम इस कठिन दुःख से मुक्त हो जाओपरन्तु मुझे तो आजन्म इसी कारागृह में जीवन बिताना पड़ेगा, क्योंकि अंग्रेजों और नैपोलियन में मित्रता होना कठिन काम हैइस प्रकार उस युवा सिपाही को कॉलिंगवुड ने मुक्त होने का विश्वास दिलायायह सब कुछ हुआ, परन्तु उस युवा ने अपने मुँह से कुछ भी कहा तो कॉलिंगवुड को धन्यवाद ही दिया, उससे यह प्रश्न किया कि आप मुझे कब तक यहाँ से छुटकारा दे सकेंगेअंत में स्वयं कॉलिंगवुड ने पूछा कि मैं और तुम्हारे पिता आपस में बड़े मित्र थे, यह बात मैं तुमको बतला चुका हूं, परन्तु तुमने अब तक मुझसे कुछ भी नहीं पूछा, इसका क्या कारण है? कॉलिंगवुड के इन वाक्यों को सुनकर कुछ देर तक तो वह चुपचाप बैठा रहा, फिर यह उत्तर दिया- जब से मैंने होश संभाला तब से मैंने अपने पिता को केवल एक बार देखा हैपरन्तु उसका भी ठीक स्मरण नहीं हैकृपा कर कहिये, मैं आपसे उनके विषय में क्या अधिक जान अथवा पूछ सकता हूँ?


उस वीर से यह बात सुनकर कॉलिंगवुड को रोमांच हो आया और उनको स्वतः अपनी दशा का स्मरण हो आयावे कहने लगे- 'मेरी भी यही दशा होगीइंग्लैंड में मेरी दो कन्याएँ हैं, वे भी एक एक दिन यही कहेंगी कि हमने अपने पिता को बहुत ही कम देखा है, परन्तु मैं उन पर अधिक प्रेम रखता हूँमैं अपने से इतनी दूर बैठा हूँ, तो भी मैं उनको शिक्षा देता हूँमैं इस जहाज पर बैठा हुआ भी उनकी ओर सदैव ध्यान रखता हूँमैं नित्य उनको एक पत्र लिखता हूँ : तुम आजकल  कौन-सी पुस्तक पढ़ती हो- तुम्हारे मन में क्या-क्या कल्पनाएँ उठती हैं, ये सब बातें भी सदैव लिखकर पूछता हूँमैं उन पर क्रोध भी प्रकट करता हूँ और यहीं बैठे हुए मैं अपना क्रोध शान्त करके उनसे प्यार की बातें भी कर लेता हूँवे वहाँ क्या करती हैं, कैसे वस्त्र पहनती हैं और किसके ऊपर प्रेम करती हैं- ये सब बातें मैं यहीं बैठा-बैठा जानता हूँउनका विवाह होगाउनके पति मेरे दामाद होंगे, तात्पर्य यह है कि पिता के अपनी संतान के प्रति जो कर्तव्य हैं वे सब मैं यहीं बैठे हुए कर रहा हूँपरन्तु यदि मैं कन्याओं को प्रत्यक्ष देख सका, तो इस सारी व्यवस्था से लाभ क्या? जब उनकी उमर दो-तीन वर्ष की थी, तब से उनको गोद में लेने तक का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ और मैंने उनको अपनी आँखों से खेलते-कूदते कभी देखा कि उनको देखकर मैं प्रसन्न होताअतएव जिस प्रकार तुम अपने पिता की ओर से उदासीन हो उसी प्रकार वे भी मेरी ओर से उदासीन होंगी अथवा हो जायेंगीजिसने अपने पिता को कभी अच्छी तरह आँख भर कर देखा ही नहीं, वह अपना प्रेम किस प्रकार प्रकट कर सकता है? मैं उनका पिता हूं, मेरे विषय में उनकी क्या कल्पना होगी? हर रोज मेरे पत्र उनके पास जाते हैं, वे ही उनके पिता हैंअथवा उन पत्रों में जो कुछ मैं उपदेश लिखता हूँ वे उपदेश ही उनको पिता-रूप हैंसम्भव है कि कभी-कभी उनकी यह कल्पना होती होप्रेम अधिकतः उसी पर प्रकट किया जाता है जिनके दर्शन होते रहे, परन्तु जिस मनुष्य के कभी दर्शन ही नहीं हुए, उस पर प्रेम किस प्रकार उत्पन्न हो सकता है? क्योंकि जो मनुष्य दिखायी नहीं पड़ता वह है अथवा नहीं, इस बात का अनुमान किस तरह किया जाय? उसका होना होना बराबर है, उस पर कोई भी प्रेम नहीं करता और उसके मरने पर उसके लिए कोई रोता भी नहीं ।' यह कहकर उन्होंने अपने दोनों हाथ मुंह पर रख लिये और रोने लगेरोते रोते कॉलिंगवुड ने फिर कहना आरम्भ किया- 'मेरा स्वास्थ्य वृद्धावस्था के कारण कुछ गिर गया है, इस कारण मैंने एक विनय-पत्र लन्दन भेजा था और उसमें विनय की थी कि यदि इस कार्य से मुझे शीघ्र मुक्ति प्रदान की जाय तो अति उत्तम होपरन्तु वहाँ से उत्तर मिला कि कोई दूसरा मनुष्य तुम्हारी योग्यता का होने के कारण, तुमको वहीँ रहना चाहिए और इस उत्तर के साथ ही मेरी वीरता के उपहार-स्वरुप, सम्मानसूचक पदवियाँ और स्वर्ण-पदक भी बहुत से प्राप्त हुएपरन्तु इन पदवियों और पदकों से मुझे क्या लाभ? ये पदक मेरे हृदय की ऊपरी शोभा को अवश्य बढ़ावेंगे, परन्तु मेरे हृदय के अन्दर क्या घटित हो रहा है, इसे कौन जान सकता हैजब सेना-विभाग में इतने लोग भरे पड़े हैं, तब मेरी जगह पर काम करने योग्य कोई नहीं, यह मेरा दुर्भाग्य हैमरण काल के समीप जब मेरी आँखें मुझे जवाब दे जायेंगी, यदि उस समय मेरा छुटकारा हुआ तो मैं अपने बाल-बच्चों को देख भी सकूँगा ।' इन सब बातों कहने के पश्चात वह कुछ देर तक चुप रहे, एडमिरल ने अपने मन ही मन कुटुम्ब प्रेम और स्वदेश-प्रेम की तुलना कीअन्त में उन्हें कुटुम्ब प्रेम की अपेक्षा स्वदेश-प्रेम ही श्रेष्ठ प्रतीत हुआतब उसने उस युवा सैनिक से कहा- 'यद्यपि मुझे अपने बाल-बच्चों से अधिक प्रेम है, तो भी मुझे अपने स्वदेश से कम प्रीती नहीं हैअपने स्वदेश के वैभव की वृद्धि करना मेरा प्रथम कर्तव्य हैआजन्म मेरा इसी ओर ध्यान रहा है और जीवन के अन्तिम दिवस भी मैं इसी ध्याम में व्यतीत करना चाहता हूँकुटुम्ब-प्रेम भी आवश्यकीय है, परन्तु स्वदेश-प्रेम उससे भी अधिक आवश्यकीय हैमैं इंग्लैंड जाकर बेकार इधर-उधर वहाँ गलियों में घूमकर क्या करूंगा? इसकी अपेक्षा इंग्लैंड की स्वतन्त्रता का नाश करने की घात में लगे हुए फ्रांस की महत्वकांक्षा का प्रतिबन्ध करने के लिए एक दृढ़ बाँध के समान खड़ा रहना मेरा मुख्य कर्तव्य हैलन्दन के उपवनों में निरुद्योगी लोगों की तरह आलसी बनकर घूमते रहने की अपेक्षा इंग्लैंड और फ्रांस के बीच समुद्र के किनारे पर स्वदेश-हित के लिए मरना मैं अच्छा समझता हूँ


पाठकगण! कॉलिंगवुड की स्वदेश-भक्ति का वर्णन उन्हीं के शब्दों में हमने आपके सम्मुख उपस्थित कियाइस पर क्या आप यह परिणाम नहीं निकाल सकते कि स्वदेश-भक्ति के लिए त्याग एक मूल-मन्त्र हैयदि हम यहाँ पर अपने देशवासियों के लिए दो-एक कटु वाक्य लिख दें, तो हमारे पाठकगण हमें क्षमा करेंगेनागरी-अक्षरों के प्रचार की सरकारी आज्ञा प्रकाशित हुए आज कितने ही वर्ष व्यतीत हुए, परन्तु उसमें कुछ भी सफलता प्राप्त हुई? इसका कारण क्या है? इस प्रान्त में अधिक लोग अविद्या-ग्रसित होने के कारण अपना सारा अदालती कार्य अपने वकीलों द्वारा कराते हैं, परन्तु कितने वकील हैं जो अपना काम-काज देवनागरी-अक्षरों में करते हैं? या तो वे आलसी हैं, या उनको यह भय रहता है कि कहीं जज साहब खफा हो जायकहीं कलक्टर साहब अप्रसन्न हो जाय, जिसके कारण हमारी आमदनी में किसी प्रकार का विघ्न पड़ेजब हमारे देश-भाई थोड़ी-सी आमदनी के लोभ में पड़कर अपना स्वार्थ त्याग नहीं कर सकते, तब स्वदेश-हित के अन्य बड़े-बड़े त्यागों के लिए वे क्या कर सकते हैं? काशी नागरीप्रचारिणी सभा की लिस्ट में हमने कई एक प्रतिष्ठित नागरी-प्रेमी-वकीलों के नाम देखें, परन्तु जब उनसे मिला और देखा कि सारा काम-काज उर्दू में करते हैं, तब उनसे विनयपूर्वक पूछा गया कि आप तो नागरी-हितैषी हैं, आप उर्दू में क्यों काम करते हैं- तब या तो ठीक उत्तर ही मिला, यदि मिला तो केवल यह कि हमारे पास हिन्दी-पढ़ा क्लर्क नहीं, या नागरी जानने वाला क्लर्क मिलता ही नहींयह हमारे देश के उन लोगों की दशा है जो पढ़े-लिखे और प्रतिष्ठित हैंउस देश पर जाति के लिए यह बहुत बड़ी लज्जा की बात है कि जहाँ पर विद्वान लोग आलस्य के दोष उदासीनता से अथवा अपने लाभ में हानि होने के डर से स्वदेश-वैभव के एक उत्तम साधन को जानकर भी उस ओर दुर्लक्ष्य रखते हैं


(मार्गशीर्ष-शुक्ल १, सं० १९६४)

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