Speeches & Writings
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स्वदेशी भाव
स्वदेशी भाव देश में दिन-दिन ज्यादा फैल रहा है । देश की भलाई चाहने वालों के दिलों में इसको देखकर आशा और खुशी बढ़ रही है और उनमें से कितने अपने-अपने बुद्धि-बल के अनुसार कोशिश कर रहे हैं कि यह भाव दिन-दिन बड़े नगर-नगर, गाँव-गाँव, घर-घर में फैले । कहीं-कहीं ऐसा मालूम होता है कि कुछ सरकारी अफसर इस हलचल को देखकर कुछ अनमने हो रहे हैं और कोई अचरज की बात नहीं, जो इनमें से कुछ इसको दबाने की भी इच्छा कर रहे हों । गवर्नमेंट और प्रजा दोनों की भलाई के ख्याल से यह जरुरी है कि सरकारी अफसर इस हलचल के कारणों को, इसके मतलब को, और इसके दल को ठीक-ठीक समझ लें । ऐसा करने से बहुत-सी-ऐसी नासमझी, जो बचायी जा सकती है और उससे पैदा होने वाले अनर्थ बचाये जा सकेंगे ।
स्वदेशी का अर्थ क्या है- मिस्टर गोखले के शब्दों में स्वदेशी का अर्थ है: गहरा, गाढ़ा,उत्कट, अन्य सब भावों को दबा लेने वाला अपने देश का प्रेम । क्या कोई प्रतिष्ठित अंग्रेज इसको बुरा कह सकता है? संसार की सब जातियों में अंग्रेज अपने देश-प्रेम के लिए नामवर हैं । अंग्रेज बच्चे अपनी माँ के दूध के साथ अपने देश के प्रेम का रसपान करते हैं । अंग्रेजी धाएं बच्चों को खिलाते समय देश-प्रेम के गीत सुनाती हैं । अंग्रेजी स्कूलों में लड़के और लड़कियों को देश के प्रेम का सबक पढ़ाया जाता है । अंग्रेजी क्लब और कमेटियों में, म्युनिसिपल सभाओं में और पार्लमेण्ट में, अखबारों और किताबों में, जाति के खेलों में और जाति के गानों में, देश के प्रेम का भाव सबसे ऊपर छाया रहता है । किसी अंग्रेज को यह कहना कि वह अपने देश का भक्त नहीं, या उसको अपने देश से प्रेम नहीं, उसको बड़ी बुरी गाली कहना है । लार्ड चैथम ने अपने देश की बहुत दिन सेवा की और मरने के समय भी 'मेरा देश! मेरा देश! यह रटते हुए शरीर छोड़ा, इसलिए आज तक अंग्रेज उनका नाम आदर के साथ लेते हैं । नेलसन ने ट्रैफलर की लड़ाई के समय अंग्रेजी सेना को टेर दे दी कि इंग्लैंड आशा करता है कि उसका हर एक पुत्र अपना कर्तव्य करेगा । वह टेर आज तक अंग्रेजों में देश-प्रेम और कर्तव्य के भाव को जगाने के लिए काम में लायी जाती है और नेलसन के नाम को अंग्रेज लोग आज तक अभिमान के साथ लेते हैं । इंग्लैंड के प्रसिद्ध कवि शेक्सपियर के 'रिचर्ड दि सेकण्ड' नाम के नाटक में उन्होंने इंग्लैंड के प्रति जो प्रेम का भाव दर्शाया है, उसको पढ़कर अंग्रेजो का रोम-रोम पुलकित हो जाता है । कौन अंग्रेज है, जिसपर सर वाल्टर स्काट की उन पंक्तियों का असर न पड़ा हो जिनमें उन्होंने उस आदमी की आत्मा को मुर्दे के समान वर्णन किया है जिसके दिल में अपने देश को देख देश प्रेम का भाव नहीं उठता और लिखा है, कि ऐसे मरदूद के मरने पर न कोई उसके नाम पर रोयेगा, न उसकी इज्जत करेगा, न कोई उसका गुन बखानेगा । अन्त में कौन अंग्रेज है कि जिसका हृदय अपने जातीय गान को सुनकर आनन्द और अभिमान से न धड़कने लगता हो । जहां-जहां अंग्रेजी भाषा पढ़ी व बोली जाती है, वहां-वहां उसके द्वारा देश-भक्ति का भाव फैला है । अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, और अन्य अंग्रेजी कालोनियां इसकी उदाहरण हैं । इतना ही नहीं, योरोप के और-और देशों में भी अंग्रेजों के देश-प्रेम और स्वतन्त्रता प्रेम से भरी भाषा का असर पड़ा है । क्या यह मुमकिन था कि हिन्दुस्तान के रहने वालों के दिल में, जिनके बड़े-बूढ़ों ने हजारों बरस तक ऊंचे से ऊंचे दर्जे की उन्नति और साम्राज्य का सुख अनुभव किया था, ऐसी अंग्रेजी भाषा को पढ़कर भी फिर अपने देश के प्रेम का भाव न जागे और अपने बड़े बूढ़ों के समान इज्जत और प्रतिष्ठा पाने की इच्छा न हो । जितने अच्छी तबियत के अंग्रेज हैं वे इस बात पर अब तक अफ़सोस जाहिर करते आए हैं कि पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानियों में देश का उतना गहरा और गाढ़ा प्रेम नहीं दिखायी देता, जिससे वे अपने देश-भाइयों की भलाई के लिए लगातार कोशिश करें । इसका कारण यह था कि बहुत दिनों की गुलामी से हमारे देश के लोगों के दिल ऐसे बुझ गये थे कि उनमें देश के प्रेम की गरमी लाना मुश्किल हो गया था । अब तो कितने ही कारणों से यह देश का प्रेम लोगों के दिलों में बढ़ने लगा है, इससे हर एक सच्चे स्वतन्त्रता से प्रेम रखने वाले अंग्रेज को प्रसन्न होना चाहिए, न कि नाराज ।
योरोप में अगर किसी ऐसी जाति में, जिससे इंग्लैंड का कुछ संबंध नहीं है, प्रजा लोग देश प्रेम दिखाती है और स्वतन्त्रता एवं स्वराज्य पाने के लिए लड़ने और मरने के लिए तैयार हो जाती है, तो इंग्लैंड इस बात पर अपनी बड़ी ख़ुशी दिखाता है । फ्रांस, इटली और ग्रीस की कथा पुरानी हो गई, अभी रूस में जो प्रजा को, राज के प्रबन्ध में अधिकार देने के लिए, पार्लमेण्ट के समान प्रजा के चुने प्रतिनिधियों की एक सभा कायम करने के लिए, प्रजा में हलचल मच रही है, उस पर न सिर्फ लिवरल दल के नायक सर हेनरी कैम्बल बैनमेंन बल्कि और कितने ही अंग्रेजों ने आम तौर से अपनी ख़ुशी और हमदर्दी ज़ाहिर की है । तो क्या हिन्दुस्तान ही की प्रजा में, जिनके बारे में इंग्लैंड के राजा और पार्लमेण्ट यह बार-बार कह चुके हैं कि वे उन सब अधिकारों के अधिकारी है जो अंग्रेजों को प्राप्त है और जिनके बारे में अभी दो साल भी नहीं हुए, इंग्लैंड के एक बड़े लायक बेटे लार्ड कर्जन ने कहा था कि हमारे और हिन्दुस्तान के एक ही राजा की प्रजा, परमेश्वर और कानून की नजर में, सम्पूर्ण रूप से समान है ।'
भारत के कुछ पढ़े-लिखे, देशभक्त हिन्दुस्तानियों में देश-प्रेम का भाव और स्वतंत्रता और स्वराज्य की अभिलाषा बढ़ते देख अंग्रेज अफसर, जो कहते हैं कि हम हिन्दुस्तानियों की भलाई करने के लिए ही हिन्दुस्तान में है, ईढ और नाराजी जाहिर करके अपने बाप-दादों का नाम और अपनी इज्जत गवायेंगे? हमको यह आशा करने दो कि वे ऐसा न करेंगे ।
जापान से इंग्लैंड का पहले कुछ सम्बन्ध न था, अब थोड़े ही दिनों से इन दोनों की मिताई हुई है, लेकिन जापानियों की देश-भक्ति की लाखों अंग्रेज प्रशंसा करते आए हैं । अंग्रेजी समाचारपत्र जापानियों के बल-पौरुष, पराक्रम, उत्साह और देश के लिए अपने को बलिदान कर देने के स्वभाव की प्रशंसा करते नहीं अघाते । जापान के एक कवि ने जापानियों की देश-भक्ति का इस प्रकार वर्णन किया है 'मेरे देश! स्वदेश! सब जगह और सब दिन हृदय का सबसे पहला और सबसे बड़ा प्रेम तेरे अर्पण! मेरा खून, मेरा पहला खयाल, और मेरे माथे का पसीना सिर्फ तेरे ही लिए होगा ।'
जब इस प्रकार से जापान की देशभक्ति का हाल पढ़कर अंग्रेज उसकी सराहना करते हैं, तो क्यों कोई अंग्रेज दिल का ऐसा छोटापन दिखावे कि उस हिन्दुस्तान की भूमि में जो उसको और उसके लाखों देश-भाइयों को विपुल धन-धान्य और सुख दे रहा है और जिसके सम्बन्ध से इंग्लैंड पहले दर्जे की राजशक्ति बन रही है, उस देश के निवासियों में देश के प्रेम का भाव बढ़ता हुआ देखकर ख़ुशी न जाहिर करे । जो ऐसा न कर सकें, तो उनको इतना तो जरूर समझ लेना चाहिए कि हिन्दुस्तान के सब पढ़े-लिखे और विचारवान लोग इस स्वदेशी भाव को बढ़ते हुए देखकर आशा से फूल रहे हैं और ईश्वर का धन्यवाद कर रहे हैं । और दिन-दिन उनका यह जतन होगा कि पढ़े-अनपढ़े, छोटे और बड़े, स्त्री और पुरुष सब में स्वदेश का प्रेम वैसा ही बड़े जैसा कि हर एक अंग्रेज बालक के हृदय में होता है । और वे इस बात का यत्न करेंगे कि हर एक भारत-सन्तान अपने देश-धर्म का वही महामन्त्र बनावे, जिसको जापानियों ने स्वीकार किया है और इसको हम अभी ऊपर लिख चुके हैं । इस देश-भक्ति के बढ़ने में यदि वे कोई अनुचित रोक पहुँचाने का साहस करेंगे तो वे उसकी बाढ़ को तो रोक न सकेंगे, किन्तु प्रजा की आंखों में गिर जावेंगे, और राजा-प्रजा में जो सदभाव रहना चाहिए उसको हानि पहुँचावेंगे ।
देश का प्रेम हर जाति में थोड़ा-बहुत होता है । संजोग अच्छे मिलने से वह बढ़ता और प्रबल हो जाता है और संजोग बुरे इकठ्ठा होने से वह घटता और दुर्बल हो जाता है । यह कहना मूर्खता होगी कि अंग्रेजों के आने से पहले हमारे देश में देश का प्रेम था ही नहीं ।
सर विलियम वेडबर्न के भी हमलोग उतने ही कृतज्ञ हैं । ये तथा और बहुत से सत्व,न्याय और स्वतन्त्रता के प्रेमी अंग्रेज, जो यहां रहे हैं उनमें से भी, हम लोगों में इस देश-प्रेम के भाव को अपनी हमदर्दी और मदद से बढ़ाते आए हैं । पहले और अंग्रेज इनको गाली देते थे और अपने देश का बैरी कहते थे, लेकिन अब 'पायोनियर' जैसा ऐंग्लोइंडियन पत्र भी सर हेनरी काटन और उनके समान खयाल के लोगों का इस बात के लिए गुन मानता है । और ज्यों-ज्यों वक़्त बीतेगा, त्यों-त्यों और अंग्रेजों को भी यह समझ में आने लगेगा कि वे ही अंग्रेज अपने इस देश के राज्य के सच्चे मित्र हैं जो सच्चे भाव से चाहते हैं कि हिन्दुस्तान के लोगों को वे सब हक़ और अख्तियार मिलें, जो धर्म से उनको मिलने चाहिए और जो इंग्लैंड की और प्रजाओं को मिले हुए हैं । जो अंग्रेज हिन्दुस्तानियों के साथ अन्याय या उनका अनादर करते हैं और चाहते हैं कि हिन्दुस्तानी ऊपर उठें, वे इंग्लैंड और हिन्दुस्तान के सम्बन्धों की जड़पर प्रहार कर रहे हैं ।
हमको निश्चय है कि इस देश में इस समय भी ह्यूम और वेडबर्न, काटन और यूल के समान अनेक उदारभाव अंग्रेज हैं जो इस देश की प्रजा में देश का प्रेम बढ़ता देखकर अप्रसन्न नहीं हो रहे हैं । अनेक ऐसे भी हैं जो इस पौधे को अपनी सहानुभूति से सींच रहे हैं । हम यही आशा करते हैं कि सब प्रतिष्ठित अंग्रेज अपने इन उदारचित भाइयों के उदाहरणों का अनुकरण करेंगे ।
(चैत्र कृष्ण ५, संवत १९६३) |