Mahamana Madan Mohan Malaviya

Mahamana Madan Mohan Malaviya
Reminiscences

महामना मालवीयजी के जीवन के कुछ संस्मरण

 

 

प्रोफ एस एस गैरोला

 

 

 

इलाहाबाद में हिन्दू बोर्डिंग हाउस

 


मालवीय जी का प्रथम बड़ा कार्य इलाहाबाद में २०० कमरों का “हिन्दू बोर्डिंग हाउस”(छात्रवास) था | इस कार्य में सर सुन्दर लाल ने बड़ी सहायता की | मालवीय जी की वाणी में बहुत आकर्षण था | श्री एस. दास एक स्कूल में अध्यापक थे | वे लिखते है कि एक दिन मालवीयजी उनके पास आये और कहा कि आप २०००/- हिन्दू बोर्डिंग हाउस के लिए दीजिये ताकि एक कमरा आपके नाम से बन सके | श्री एस. दास लिखते हैं कि मैंने तुरन्त २०००/- का चेक लिख दिया | पीछे सोचा कि क्या एक अध्यापक का इतना सामर्थ्य है कि वह २०००/- दान एक साथ दे सके | अत: उन्होंने उस अध्यापक से यह दान किश्तों में लिया|

 

दया और त्याग की मूर्ति

 

मालवीय जी में दया और सेवा भाव भी बहुत था | श्री शिवराम पाण्डे लिखते हैं कि एक बार सड़क के किनारे एक कुत्ता बहुत चिल्ला रहा था उसके कान में चोट लगी थी और अब उसमें कीड़े पड़ गये थे | मालवीय जी ने जब यह देखा तो वे पांडे जी के पास आये और पुछा कि कान में क्या दवाई लगाई जाय ताकि उसकी पीड़ा दूर हो जाये | दवाई लाकर  एक लंबी लकडी से कुत्ते के कान में दवाई लगाई | कुत्ता जोर से भूंका और फिर सड़क के किनारे सो गया |

 

मालवीयजी में अतीव त्याग भावना थी | १९०५ में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन बनारस में हुआ | श्री गोखले इस अधिवेशन के अध्यक्ष थे | कांग्रेस अधिवेशन बंबई हाईकोर्ट के जस्टिस सर नारायण चन्दावरकर अधिवेशन में आने वाले थे ! उनके ठहरने की उचित व्यवस्था नहीं हो सकी थी| जब मालवीय जी के सामने ये प्रश्न आया तो उन्होंने अपने खेमे से सामान बाहर निकाल कर एक पेड़ के नीचे चादर का परदा डालकर रख दिया और अपना खेमा श्री चन्दावरकर को दे दिया |

 

औद्योगिक विकास की वह ऐतिहासिक रिपोर्ट

 

मालवीयजी औद्योगिक विकास आयोग के सदस्य थे | उन्होंने १९१७ में आयोग की रिपोर्ट में अपनी असहमति व्यक्त की और अपने रिपोर्ट में लिखा कि औद्योगिक उन्नति के बिना भारत कोई उन्नति नहीं कर सकता है |

 

फलस्वरूप मालवीयजी ने “बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी“ में भारत का सर्वप्रथम इंजीनियरिंग कालेज खोला | इस कालेज के कुछ स्नातक नये इंजीनियरिंग कालेजों के प्रिंसीपल हुए और अधिकतर रेलवे और बिजली संस्थानों में नियुक्त हुए और उन्होंने सफलता के साथ अपना कर्तव्य निभाया | स्वतंत्रता के बाद अंग्रेज इंजीनियर इंग्लैंड चले गये और सोचा कि भारतीय इंजीनियर काम नहीं संभाल सकेंगे | परन्तु बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के स्नातक और अन्य इंजीनियरों ने बड़ी कुशलता से संभाला और नई नई शाखाएं खोली | तब लोगों को मालवीयजी की दूरदर्शिता का ज्ञान हुआ |

 

अंग्रेजी कविताओं का ज्ञान

 

१९१९ में जब चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे मालवीयजी ने रौलेट एक्ट पर बहुत प्रभावी भाषण दिया | जलियांवाला बाग में जनरल डायर ने अत्यंत भयंकर नरसंहार किया | सर जेम्स टोमसन उस समय दिल्ली के चीफ़ कमिशनर थे | वह बहुत समर्थ वक्ता माने जाते थे | उन्होंने रौलेट एक्ट, जिसमें पुलिस को अधिकार दिया जाना था, के पक्ष में ‘मिलटन’ का लिखा एक छन्द सुनाया | मालवीयजी ने उसी कवि की उसी कविता से एक दूसरा छन्द सुनाकर सर जेम्स को पराजित किया |

 

सर्वधर्म समभाव

 

कुछ लोगों का कटाक्ष था की मालवीयजी हिन्दुओं के पक्षपाती और मुसलमानों के द्रोही थे | यह सरासर भ्रामक है | मालवीयजी हिन्दुओं की उन्नति चाहते थे पर किसी दूसरे धर्मावलम्बी की अवनति नहीं चाहते थे | १९३२ में सर मिर्जा इस्माइल  जो मैसूर के दीवान थे लिखते है:

 

My meeting with Malviyaji proved quite an experience. Some people have shown him anti-Muslim. A conversation with him showed how untrue was this description of such a personality. Pandit Malviyaji was Indian first and last.

 

महामना मालवीयजी को बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी के लिए नवाब रामपुर और निज़ाम हैदराबाद ने एक एक लाख रुपये अनुदान दिये | ये दोनों मुसलमान शासक थे |

 

जी.के. नरिमन लिखते हैंकि १५०० शताब्दी से पारसी हिन्दुस्तान में रह रहे हैं पर हिन्दू व्यापारियों से कोई मतभेद नहीं रहा | दोनों समुंदायों में बहुत उत्तम मेल रहा है | हिन्दू विश्वविद्यालय में पारसी विद्यार्थियों को कभी यह आभास नहीं हुआ कि किसी ने उनसे भेदभाव किया |

 

   मालवीयजी ने राजपूताना होस्टल में एक बड़ा हाल सिख गुरुद्वारा को दिया, जिसमें समय समय पर सिखों के भजन-कीर्तन और पूजा पाठ होते रहे | ये उदाहरण बतलाते है कि मालवीयजी दूसरों के धर्म का आदर करते थे |

 

 

 

कचहरियों में हिन्दी लिपि

 

मालवीयजी चाहते थे कि नागरी लिपि में हिन्दी भाषा की उन्नति हो | संयुक्त प्रान्त में पहिले अदालत तथा सरकारी विभाग में कोई नागरी लिपि में आवेदन पत्र नहीं दे सकता था | मालवीयजी के प्रयास से नागरी लिपि का प्रयोग अदालतों और सरकारी विभागों में स्वीकार हो गया  |

सर एम. विश्वेशरैय्या  लिखते है कि मालवीयजी ऐसे व्यक्ति थे जो अपने लिए धन और आराम की इच्छा नहीं करते थे| यद्धपि दोनों उनको आसानी से मिल सकते थे | उनको गरीब और दुखी की सहायता भाती थी | वह सब युवकोंको सैनिक शिक्षा के पक्षपाती थे, ताकि आवश्यकता पड़ने पर वे देश की रक्षा कर सकें |  

 

 

महात्मा गांधी के ‘बड़े भाई’

 

महात्मा गांधीजी मालवीयजी का बहुत आदर करते थे, यद्धपि कुछ मामलों में उनमे मतभेद था | महात्मा गांधी जी मालवीयजी को अपना बड़ा भाई मानते थे |

मालवीयजी में अदभुत सहनशीलता थी | श्री वेंकटेश नारायण तिवारी लिखते हैं कि एक समय वह मालवीय जी के पास बैठे थे | उस समय काशी के एक बड़े विद्वान मालवीयजी के पास आये | वे अत्यन्त क्रोधित थे | कुछ समय पहले  मालवीयजी ने उन पंडित से अनुरोध किया था कि वह अपने क्रोधपर काबू करें | एक दिन पंडित जी ने मालवीय से कहा “महाराज” अब मैंने अपने क्रोध पर काबू कर लिया है |आप मुझे सौ गालियां दीजिए, मुझे क्रोध नही आयेगा | मालवीयजी ने कहा “पंडित जी आपने बहुत अच्छा किया कि अपने क्रोध पर काबू कर लिया , पर आपकी परीक्षा लेने के लिए मैं अपनी वाणीका दुरूपयोग क्यों करूं ?

 

जब किंग ने आधे वेतन पर काम  करना स्वीकार किया

 

१९३२ में मालवीयजी जेल में थे | वहां उनके स्वास्थ्य में काफी गिरावट हो गई | भारत में अंग्रेजी सरकार ने मालवीयजी को त्यागपत्र देने को कहा | उस समय भारत सरकार बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को ३ लाख रुपया सहायता देती थी | वह सहायता सरकार ने बन्द कर दी | उस अवसर पर विश्वविद्यालय के सब अध्यापकों ने अंग्रेज़ प्रिंसिपल किंग सहित लिखित निवेदन मालवीयजी को दिया कि वे आधे वेतन या जो कुछ मालवीयजी निश्चित करें, उसी पर सेवा करने को राज़ी है |

 

 

 

छात्रों को आशीर्वचन

 

मालवीयजी ने २१ जनवरी १९२० को विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह के अवसर पर छात्रों को शिक्षा दी :

Speak truth , think truth, fear only to do that is ill and ignoble . Stand up for right. Love to serve your  fellowmen Love motherland. Do good whenever you get a chance to do it. Continue your studies throughout your life. Be just and fear none. ”

 

 

छात्रवासों में गीता प्रवचन

 

१९३२ के सितम्बर मास में मेरी प्रार्थना पर एक रविवार को राजपुताना होस्टल के बडे हॉल में मालवीयजी ने सामूहिक रूप से गीता का पाठ आरंभ किया | सब विद्यार्थियों ने गीता के कुछ श्लोक गाये | दुसरे रविवार को आचार्य ध्रुवजी ने प्रवचन दिया | कुछ समय के बाद गीता प्रवचन कालेज के हॉल में होने लगा | मालवीयजी के स्वर्गवास के बाद प्रवचन मालवीय भवन में होने लगा | जिस मकान में मालवीयजी रहते थे उस मकान को विश्वविद्यालय ने ‘मालवीय भवन’ बना दिया | इस भवन में बडे विद्धानों के, महात्माओं के धार्मिक प्रवचन होते हैं |

महामहोपाध्याय पं. गिरधर शास्त्री, महामुनि करपात्री जी आदि के सारगर्भित प्रवचन हुए | केवल धार्मिक प्रवचन ही होते थे |

 

हरिजन नेताओं का सृजन

 

सन् १९३३ के जनवरी मास में शिवाजी हाल में मालवीयजी ने हरिजनों को शिक्षा देना आरंभ किया |

‘राम राम’ लिख सभी उपस्थित हरिजनों को और अन्य लोगों को राम नाम गाने को कहा | यहां यह बताना आवश्यक है कि श्री जगजीवन राम, श्री अग्निहोत्री, श्री गिरिधारी लाल, जो बाद में केन्द्र तथा प्रान्तों में मंत्री हुए, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के विद्यार्थी (स्नातक) थे |

 

 

१९४२ के देश छोड़ो आन्दोलन में जब महात्मा गांधी जी और कांग्रेस कमेटी के सब सदस्य

 

जेल में थे तब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया | सर राधाकृष्णन ने मालवीयजी ( जो उन दिनों बहुत अस्वस्थ थे ) से प्रार्थना की आप चलकर विद्यार्थियों को आदेश दें कि वे पढ़ाई करें और उपद्रवों का मार्ग छोड़ दें | कुलपति की आशा के विपरीत मालवीयजी ने आर्ट्स कॉलेज में ठसाठस भरे विद्यार्थियों से कहा कि मुझे अत्यंत दुःख है कि महात्मा गांधी जी कारावास में हैं | मैं विद्यार्थियों से अनुरोध करता हुं कि वे ऐसा कोई कार्य न करें जिससे भारत माता की स्वच्छ चादर में काला दाग पड़े |

 

फलस्वरूप सरकार ने विश्वविद्यालय बन्द कर दिया और वहां मिलिटरी तैनात कर दी | सर राधाकृष्ण  के प्रयास से तीन महीने बाद विश्वविद्यालय फिर खुला |

Mahamana Madan Mohan Malaviya