Mahamana Madan Mohan Malaviya

Mahamana Madan Mohan Malaviya
Reminiscences

 

पुण्यश्लोक महामना मालवीय जी

 

जिनकी अब कान कहानी सुन्यौ करौ |

 

आचार्य सीताराम चतुर्वेदी

 

मुझे निरन्तर २४ वर्षो तक महामना मालवीय जी का सात्रिध्य तथा उनकी निःसीम कृपा प्राप्त करते रहने का सौभाग्य मिला है | यधपि मुझे महात्मा गाँधी के साबरमती आश्रम और कविवर रविंद्रनाथ ठाकुर के शान्तिनिकेतन में रहने का भी मधुर सुयोग प्राप्त हुआ किन्तु महामना मालवीय जी के अत्यंत निष्कपट, निष्कलूष और अछिद्र औदार्पूर्ण जीवन से मैं सबसे अधिक प्रभावित हुआ और क्यों ?

 

सन १९३५ में जब मैं महामना मालवीय जी का जीवन चरित्र लिख रहा था, उन दिनों सौभाग्य से मालवीय जी महाराज के अनुज श्री श्यामसुंदर जी और उन कि बड़ी बहन यशोदा देवी जीवित थी जिससे मालवीय जी के बालजीवन और तरूणजीवन कि बहुत सी घटनाये ज्ञात हो पाई | बहुत सी घटनाये स्वंय मालवीय जी ने बताई, बहुत सी उनके मित्रो ने बताई, और बहुतो का मैं स्वंय साक्षी रहा | इनमे से कुछ घटनाये ऐसी भी थी जिन्हें महामना मालवीय जी ने छापने कि अनुमति नहीं दी थी | उनमे से एक –दो घटनाये अब प्रकट कर देने में कोई दोष नहीं है |

 

एक लाख गायत्री मंत्र का जाप

 

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए  सारे  भारत में आन्दोलन व्याप्त हो गया था, किन्तु मालवीय जी का संस्कार तो यह था कि दैवी सहायता के बिना यह संभव नहीं है, इसलिए उन्होंने त्रिवेणी तट पर बड़े हनुमान जी के मंदिर में एक लाख गायत्री मन्त्र का पुरस्चरण किया | जब उनके पिता जी ने कहा कि वकालत के साथ हिन्दू विश्वविद्यालय का काम नहीं चल सकता तो उन्होंने तत्काल अपनी चमकती वकालत को लात मार दी. विश्वविद्यालय के लिए सबसे पहला ५१ रूपये का दान उनके पिताजी ने ही दिया.

 

नगवा कि भूमि में जब आर्ट्स कॉलेज का भवन बना तो उनके सभा भवन कि छत में बड़ा विशाल सरस्वती जी का रंगीन चित्र बनवाया गया. चित्र बन जाने पर मूर्ति के अंग—प्रत्यंग बहुत बड़े होने के कारण बड़े अभद्र लगने लगे. यह देख कर यह चित्र मिटवा दिया गया. जिनके बनवाने में लगभग ६० हजार रूपये लगे थे. उन दिनों हिन्दू विश्वविद्यालय समिति कि अध्यक्ष डॉक्टर एनी बेसेंट थी. काशी  के ही एक विशिस्ट नागरिक ने इस बात पर मालवीय जी पर अविश्वाश प्रस्ताव उपस्थित कर दिया. प्रस्ताव किये जाते ही डॉक्टर एनी बेसेंट ने अत्यंत मार्मिक शब्दों में कहा – भारत के जिस सपूत ने विश्वविद्यालय के लिए एक करोड़ ३२ लाख रूपये एकत्र किये है और जिसकी निष्ठा तथा जिसके प्रयास पर हमें गर्व होना चाहिए उस पर हम अविश्वास का प्रस्ताव लावे इससे बड़ी कृतघ्नता और क्या हो सकती है. अतः मैं अविश्वास प्रस्ताव कि अनुज्ञा न देते हुए  विश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत करती हूँ. और वह विश्वास का प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ.

 

 

छात्रों को हर संभव सहायता

 

जिन दिनों पंडित लज्जाशंकर झा जी कशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ट्रेनिंग कॉलेज के प्राचार्य थे उन दिनों वे प्रथम और द्वितीय श्रेणी के छात्रो को ही भर्ती करते थे. संयोग से श्री जुगल किशोर बिडला ने एक तृतीय श्रेणी के स्नातक को मनोनीत कर भेजा. झा जी ने उसे भर्ती नहीं किया इसपर मालवीय जी ने उनसे कहा कि जब हम तृतीय श्रेणी में किसी छात्र को उत्रिण घोषित करते है तब हम उन्हें भर्ती होने से कैसे वंचित कर सकते है? और कभी कभी प्रथम श्रेणी के अपेक्षा तृतीय श्रेणी वाले स्नातक अच्छे अध्यापक सिद्ध होते है. वह छात्र भर्ती कर लिया गया.

मुरादाबाद का एक संपन्न घराने का छात्र घर से प्राप्त धन का दुरूपयोग करता रहा | उसने कभी शुल्क नहीं दिया |जब परीक्षा में सम्मिलित होने से उसे रोक दिया गया तब वह मालवीय जी कि चरण में पहुंचा कि मै दीन हूँ शुल्क नहीं दे सकता |उस छात्र को भली भांति जानने वाला एक अध्यापक ने  मालवीय जी महाराज से कहा कि यह छात्र निर्धन नहीं है |इस पर मालवीय जी ने कहा –यह निर्धन भले ही न हो किन्तु शुल्क नहीं दे सकता |इसके माता –पिता ने हमारे विस्वास पर इसे यहाँ भेजा |हमारा धर्म था कि हम इसकी गतिविधि पर प्रारंभ से ध्यान देते और शुल्क देने कि प्रेरणा करते; किन्तु हमने यह नहीं किया | नैतिक दृष्टि से अब हम इसे परीक्षा के वंचित नहीं कर सकते ,हम इसके पिता को कौन सा मुह दिखायेंगे |मालवीय जी ने उसे शुल्क- मुफ्त करके उसे परीक्षा में बैठने की आज्ञा दे दी| ऐसे एक दो नहीं ,असंख्य उदाहरण विधमान है |

 

सम्बन्धी की नियुक्ति पाप

 

मालवीय जी महाराज ने अपने जीवन काल में अपने किसी सम्बन्धी को हिन्दू विश्वविद्याल य में कोई नौकरी नहीं दी | एक बार पंडित रमाकांत जी के एक अत्यंत सुयोग्य सम्बन्धी का चयन विश्वविद्याल के एक सम्मानित पद पर हो गया |उस समय सर राधा कृष्णन कुल पति थे |मालवीय जी ने तत्काल पत्र लिख कर उस नियुक्ति का विरोध किया कि मेरे सम्बन्धी कि नियुक्ति नहीं हो सकती |सर राधा कृष्णन ने आकर पूछा कि क्या आपका सम्बन्धी होना पाप है ?इस पर बड़ी दृढ़ता से मालवीय जी ने कहा –हाँ ,हिन्दू विश्वविद्याल में नौकरी ढूढने के लिए मेरा सम्बन्धी होना अवश्य पाप है |आज जिस युग में लोग अपनी स्थापित की हुई संस्थाओ में केवल अपने संबंधियों को ही कि ताक में रहते है ,वे क्या मालवीय जी से कोई शिक्षा नहीं ले सकते ?

महामना मालवीय जी से बहुत लोगो ने कहा कि आप प्रयाग के होकर काशी में क्यों विश्वविद्याल स्थापित करना चाहते है इस पर उन्हों ने स्पष्ट उत्तर दिया था कि काशी विधा का केंद्र है ,वही विश्वविद्याल स्थापित होना चाहिए |

आज कल सभाओ में अतिथियों को जो मालाये पहने जाती है उन्हें वे तत्काल उतारकर रख देते है |मालवीय जी इसे बहुत बुरा समझते थे |एक बार उज्जैन कि एक सभा में मेरे इस व्यहवार पर उन्होंने मुझे समझाया था कि पहनाई हुई माला उतारकर रखने से माला पहनने वाले का और माला का ,दोनों का अपमान होता है उन्हों ने इस प्रसंग में प्रयाग के उर्दू कवि बिस्मिल के के गुरु नूह नारवी का एक शेर सुनाया –

 

हारो में गुथे ,जकडे भी गए ,गुलशन भी छूटा सीना भी छिदा

पहुंचे मगर उसकी गर्दन तक, यह खुश –इख्लाकी फूलो की

 

अदभुत धैर्य - सहनशीलता

 

मालवीय जी महाराज का धैर्ये अदभुत था |उनकी कोई कितनी भी समय क्यों न नष्ट करे, वे किसी को ना  नहीं करते थे |गाँधी जी का अभ्यास था कि वे जिनको जितना समय देते थे, उससे अधिक यदि कोई बैठा रहा जाता तो वे स्वंग अपने मुह पर कपडा दाल कर बैठ जाते थे झक मारकर आगंतुक को चला जाना पड़ता | पर मालवीय जी को अत्यंत धर्यपूर्वक, स्थिर होकर वक्ता को बोलते रहने देते थे, न टोकते थे,न जाने को कहते थे|एक बार इटावे के एक सज्जन मालवीय जी के पास एक सोरठे कि मिमासा करने आ पहुंचे –

 

संकर चाप जहाज, सागर रघुवर बाहुबल

बूढ़े सकल समाज, चढ़े जो प्रथमहि मोहबस

 

मालवीय जी महाराज ने उन्हें भलीभांति समझा भी दिया भीर भी वे दिन में साढ़े तीन बजे तक और रात में आठ बजे से लेकर ढेड बजे तक तर्क देते रहे | मालवीय जी का धर्य तो वंचित नहीं हुआ, पर मेरा धर्य विचलित हो गया | मैं उस सज्जन को किसी प्रकार फुसलाकर बाहर ले आया और उन्हें बड़े आड़े हाथ लिया कि इस वृदावास्था में आप उन्हें यह कष्ट दे रहे है इतना समझा देने पर भी समझ नहीं रहे थे | यह कह कर मैंने उन्हें गाड़ी में बिठा कर स्टेशन पहुंचा दिया और इटावे का टिकट लेकर उन्हें सवेरे कि गाड़ी में चढ़ा दिया |वे भुनभुनाये भी बहुत और उन्होंने एक बड़ी लम्बी चिट्ठी मालवीय जी को लिखी कि आपके लम्बे से काले गण ने मेरा बड़ा अपमान किया, आदि. मालवीय जी ने मुझसे कहा की उनके साथ ऐसा वयवहार नहीं करना चाहिए था, उन्हें क्षमा–पत्र लिखो | उन्होंने स्वंग बोल कर मुझसे तो छमा पत्र लिखवाया ही, साथ ही अपने ओर से भी एक क्षमा–पत्र लिख दिया |

 

ऐसे महान उदार, दिव्य, महापुरुष थे महामना मालवीय जी महाराज| यह जानकार संतोष हुआ कि प्रज्ञा का विशेषांक निकल रहा है| मैं भी उसमे कुछ योग दे सका इसका मुझे गर्व भी है, संतोष भी| 

Mahamana Madan Mohan Malaviya