Reminiscences
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विश्वविद्यालय के लिए कैसे धन एकत्र किया
डॉ कृष्णदत्त द्धिवेदी,
बिरला जी से अधिकारी के रूप में दान लिया राजा बलदेवदासजी बिरला ने एक बार घोषणा की कि वे गंगा में किसी अधिकारी व्यक्ति को दान करेंगे I इस प्रकार दान लेना बड़ा ही गर्हित समझा जाता है I अतः कोई अधिकारी व्यक्ति दान लेने के लिए तैयार नहीं हो रहा था I मालवीय जी को जब यह सूचना मिली तो उन्होंने बिरलाजी को लिखा कि मैं इस प्रकार का दान लेने के लिए तैयार हूँ I इस बात पर काशी के विद्द्त-समाज में इनकी बड़ी कटु आलोचना कि गयी, किन्तु यही अपनी बात पर दृढ़ रहे और इन्होनें निश्चित तिथि पर उक्त दान लिया I बिरलाजी ने भी मालवीय जी जैसे अधिकारी व्यक्ति के दान लेने कि सूचना मिलने पर दान की राशि काफी बढ़ा दी I उक्त दान के समय काफी भीड़ एकत्रित हो गयी और मालवीय जी के प्रति बड़ी काना-फूसी हुई I मालवीय जी ने उक्त दान लेने के साथ तुरन्त उस दान की धनराशि में अपने पास से कुछ रुपये मिलाकर, वहीँ उक्त दान काशी हिन्दू विश्वविद्द्यालय को दे दिया I इस पर उपस्थित आलोचकों के साथ ही भीड़ ने 'साधू-साधू' के नारे के साथ 'महामना जिन्दाबाद' के नारे से उनका स्वागत किया I
नवाब की जूती दुपट्टे में ली इसी प्रकार की एक और घटना भी महत्वपूर्ण है I महामना एक नवाब के यहाँ विश्वविद्द्यालय के लिए चन्दा लेने गये थे I नवाब ने चन्दा देने से इंकार करते हुए कहा कि 'मैं चन्दा नहीं दे सकता I' मालवीय जी ने दो लाख चन्दा देने का प्रस्ताव रखा था, जो घटते-घटते दस रुपये तक पहुँच गया था I नवाब ने इतना देने से भी इंकार कर दिया I जाते-जाते मालवीय जी ने अन्तिम निवेदन करते हुए कहा कि 'मैं कहीं से वापिस नहीं हुआ हूँ I आपसे अनुरोध है कि कुछ तो दे दीजिए I' ऐसा कहते हुए उन्होंने अपना श्वेत दुपट्टा पसार दिया I नवाब ने झट अपने पैर का जूता उतारा और दुपट्टे में डाल दिया I मालवीय जी इस अशोभनीय घटना से जरा भी विचलित नहीं हुए और उस जूते को यत्नपूर्वक काशी लाये I काशी पहुँचकर उन्होंने समाचार-पत्रों में विज्ञापन निकाला कि 'अमुक नवाब ने विश्वविद्द्यालय के लिए मालवीय जी को अपना जूता दान दिया है, जिसको अमुक तिथि पर नीलाम किया जायगा I' इस समाचार को पढ़कर उक्त नवाब बहुत लज्जित हुआ और उनसे स्वंय आकर क्षमा माँगी और अपना जूता खासी रकम देकर वापस लिया I
शव पर फेके जा रहे पैसे लुटे एक बार मालवीय जी निजाम हैदराबाद के यहाँ काशी हिन्दू विश्वविद्द्यालय के लिए चन्दा लेने गये थे I निजाम ने उन्हें चन्दा देने से साफ इंकार करते हुए कहा कि 'मैं हिन्दू विश्वविद्द्यालय के लिए चन्दा कदापि नहीं दे सकता I' मालवीय जी लौट रहे थे कि मार्ग में किसी धनाढ्य व्यक्ति का शव जा रहा था I मुट्ठी भर-भर के रुपये शव पर फेंके जा रहे थे I मालवीय जी भी वे रुपये लूटने लगे I राष्ट्रीय स्तर का नेता होने के कारण कुछ लोगों ने उन्हें पहचान लिया और कहा- 'महाराज आप महान पुरुष हैं I आपकी ख्याति सारे देश में फैली हुई है I आप यह क्या कर रहे हैं?' मालवीय जी ने कहा कि काशी जाकर मैं क्या उत्तर दूँगा कि हैदराबाद से खाली आया हूँ? मेरा संकल्प है कि मैं कहीं से खाली नहीं लौटूंगा I अतः ये रुपये विश्वविद्द्यालय के लिए हैदराबाद के नाम से जमा किये जायँगे I' यह सूचना निजाम के यहाँ पहुँची तो वे बहुत लज्जित हुए और मालवीय जी को बुलाकर विश्वविद्द्यालय के लिए पर्याप्त दान दिया I
दिवालिया सेठ की साख कैसे बनी एक बार बहुत से सेठ को व्यापार में घाटा लगा I बाजार से उसकी साख जाती रही I दिवालिया होने की स्थिति पैदा हो गयी I वह महामना मालवीय जी के पास अपनी दयनीय स्थिति के सम्बन्ध में परामर्श हेतु आया I मालवीय जी ने कहा- 'आप पांच लाख रुपये का चेक हिन्दू विश्वविद्द्यालय के नाम दे दीजिए I आपकी स्थिति सुधरने पर वह चेक विश्वविद्द्यालय के खाते में जमा किया जायगा I इस दान की सूचना समाचार पत्रों में भेज दी जायगी कि अमुक सेठ ने पांच लाख रुपये का दान हिन्दू विश्वविद्द्यालय को दिया है I इससे आपकी साख जम जायगी और आप अपनी आर्थिक स्थिति सँभाल सकेंगे I सेठ आश्चर्यचकित होकर मालवीय जी को देखने लगा I मालवीय जी ने कहा- 'आप मुझसे परामर्श लेने आये हैं, फिर मेरी बात क्यों नहीं मानते ?' उस सेठ ने चेकबुक निकालकर पाँच लाख का चेक काटकर मालवीय जी को दे दिया इस समाचार के प्रकाशन से उस सेठ की साख इतनी जम गयी कि दिवाला निकलते निकलते बच गया I वह अपनी स्थिति सँभाल कर व्यापार में पुनः सफल हो गया I
गांव के स्त्रियों ने अपने आभूषण दिए मालवीय जी के भाषण में ऐसी शक्ति थी कि एक दिन मालवीय जी पटना की एक सार्वजनिक सभा में बोल रहे थे I देहात की भीड़ अलग थी, इसलिए मालवीय ई देहाती भाषा में बोल रहे थे I इनका भाषण इतना प्रभावशाली था कि देहात ककी स्त्रियाँ प्रभावित होकर अपने चाँदी के जेवर छल्ले आदि मंच पर फेंकने लगीं I मालवीय जी ने बड़े प्रेम से उन्हें बटोरा और कहा कि ये आभूषण मेरे लिए लाखों रुपये के दान से अधिक मूल्यवान हैं I कोई सज्जन इन चीजों की कीमत चुकाना चाहेंगे ? इस पर एक धनी व्यक्ति ने दस हजार रुपये देकर उन आभूषणों को खरीद लिया I मालवीय जी में विलक्षण वाक्पटुता थी I |