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महामना मालवीय
रविंद्र नाथ ठाकुर
नूतन जुग सूर्य उठिल, छुटिल तिमिर रात्रि !
तब मंदिर आँगन भरि, मिलिल सकल जात्री !
दिन आगत ओई, भारत तबउ कोई ?
गत गौरव हत आसान, नत मस्तक लाजे !
ग्लानि तार मोचन कर, नर समाज माझे !
स्थान दाओ, स्थान दाओ, दाओ दाओ स्थान है !
जागृत भगवान है !
नूतन युग का प्रकाश आ गया ! रात्रि का अंधकार भी छट गया !
आगे जाने वाले यात्रियों का समय आ पंहुचा, लेकिन उनमे भारत नहीं दिखाई देता !
आज भारत का गौरव लुप्त हो गया, उसका आसन छीन गया, और लज्जा से वे नतमस्तक है !
है जागृत भगवान !
उसकी ग्लानि मिटाकर उसे स्थान देने की कृपा करे !