Mahamana Madan Mohan Malaviya

Mahamana Madan Mohan Malaviya

महामना मालवीय

 

रविंद्र नाथ ठाकुर

 

 

नूतन जुग सूर्य उठिल, छुटिल तिमिर रात्रि !

तब मंदिर आँगन भरि, मिलिल सकल जात्री !

दिन आगत ओई, भारत तबउ कोई ?

गत गौरव हत आसान, नत मस्तक लाजे !

ग्लानि तार मोचन कर, नर समाज माझे !

स्थान दाओ, स्थान दाओ, दाओ दाओ स्थान है !

जागृत भगवान है !


 

 

नूतन युग का प्रकाश आ गया ! रात्रि का अंधकार भी छट गया !

आगे जाने वाले यात्रियों का समय आ पंहुचा, लेकिन उनमे भारत नहीं दिखाई देता !

आज भारत का गौरव लुप्त हो गया, उसका आसन छीन गया, और लज्जा से वे नतमस्तक है !

है जागृत भगवान !

उसकी ग्लानि मिटाकर उसे स्थान देने की कृपा करे !

 


 

 


 

 

Mahamana Madan Mohan Malaviya