Mahamana Madan Mohan Malaviya

Mahamana Madan Mohan Malaviya

हिन्दी पत्रकारिता : मालवीय युग

 

पंडित लक्ष्मीशंकर व्यास

 

भारतेंदु युग के पश्चात सन १८८५ से हिन्दी पत्रकारिता का मालवीय युग आरम्भ होता है I राजा रामपाल सिंह १८८५ में ही 'हिंदोस्थान' का प्रकाशन कालाकांकर से करने लगे I इसके पूर्व यह पत्र लंदन से प्रकाशित होता था I महामना मालवीय ने सन १८८७ ई० से इस पत्र का सम्पादन आरम्भ कर हिन्दी पत्रकारिता को नयी दिशा प्रदान की I आधुनिक हिन्दी दैनिक समाचार पत्र की जो रूपरेखा महामना मालवीय ने 'हिंदोस्थान' के माध्यम से आरम्भ की, उसका ऐतिहासिक महत्व है I आपके संपादक मंडल में हिन्दी के दिग्गज विद्वान तथा पत्रकार थे जिनमे श्री अमृतलाल चक्रवर्ती, श्री बालमुकुंद गुप्त, पंडित प्रतापनारायण मिश्रा, श्री गोपालराम गहमरी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं I मालवीय जी के संपादक मंडल के इन सदस्यों ने बाद में अलग-अलग स्वतन्त्र समाचार-पत्रों का दायित्व संभाला और हिन्दी पत्रकारिता के गौरव स्तम्भ बने I श्री बालमुकुंद गुप्त को उर्दू लेखन क्षेत्र से हिन्दी में लाने का श्रेय महामना को है I 


महामना मालवीय ने सन १८८७ से 'हिंदोस्थान', 'अभ्युदय', 'लीडर', 'मर्यादा' तथा 'सनातन-धर्म' का सम्पादन तथा प्रकाशन किया I इसके अतिरिक्त सन १९२४ में आपने 'हिंदुस्तान टाइम्स' के संचालन का भार भी ग्रहण किया I डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को आपने 'हिंदुस्तान रिव्यु' तथा श्री रामानंद चटर्जी को 'मॉडर्न रिव्यु' के सम्पादन प्रकाशन में भी महत्वपूर्ण योगदान किया था I इससे यह स्पष्ट है की भारतेंदु-युग के बाद एक चौथाई शती एक भारतीय पत्रकारिता पर महामना मालवीय की विशेष छाप अंकित रही है I भारतीय पत्रकारिता के इन पचीस वर्षों को हमे मालवीय युग की संज्ञा देनी चाहिए I इस युग में 'हिंदोस्थान' हिन्दी पत्रों का आदर्श पत्र बन गया था I यही कारण है अनेक स्थानों से प्रकाशित हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं महामना मालवीय द्वारा संपादित 'हिंदोस्थान' के ही आकार-प्रकार तथा तदनुकूल साज-सामग्री सहित प्रकाशित हुई I


सन १८८५ में जैसा पहले कहा जा चुका है, राजा रामपाल सिंह लंदन से 'हिंदोस्थान' को कालाकांकर ले आये I यहाँ पत्र के हिन्दी तथा अंग्रेजी संस्करण अलग-अलग प्रकाशित होते थे I इसी वर्ष भारतीय कांग्रेस की स्थापना बम्बई में हुई थी I महामना मालवीय तथा राजा रामपाल सिंह आरम्भ से ही इसके प्रमुख थे I इसी वर्ष कानपुर से बाबू सीताराम ने 'भारतोद्य' दैनिक का प्रकाशन किया I इस पत्र का मुख्य लक्ष्य राष्ट्रभाषा हिन्दी को अग्रसर करना था I 'भारतोद्य' दैनिक का वार्षिक मूल्य दस रूपए था I काशी से सामाजिक, शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक विकास में गुजरातियों का प्रमुख हाथ रहा है I इस पत्रिका के प्रकाशन का उदेश्य इन्ही प्रवर्तियों की अभिव्यक्ति रही है I इस वर्ष जो नए मासिक पत्र निकले उनमे भारतप्रकाश, धर्मप्रचारक पत्र, विद्याविलास, भारत पंचामृत, हरिश्चंद्र कला, आर्य समाचार और धर्मप्रकाश मुख्य है I 'विद्याविलास' मासिक का प्रकाशन प्रख्यात संपादक पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्रा ने 'उचितवक्ता' प्रेस, कलकत्ता से किया था I भारत पंचामृत के संपादक श्री बालगोविन्द सिंह थे I वे इसे भागलपुर से प्रकाशित करते थे किंतु इसका मुद्रण उचितवक्ता प्रेस से ही होता था I इन पत्रों में सामाजिक जागरण तथा चेतना के निमित्त नैतिक तथा धार्मिक विषयों पर लेख प्रकाशित होते थे I


वर्ष १८८६ में दैनिक तथा साप्ताहिक पत्र प्रकाशित नहीं हुए, जो दो मासिक पत्र निकले उनके नाम हैं- 'रसिक पंच' तथा 'सुखदसंवाद' I पहला पत्र बलभद्र मिश्र ने प्रयाग से तथा दूसरा पत्र लखनऊ से पंडित लक्ष्मण प्रसाद ब्रह्मचारी ने निकाला I 'रसिक पंच' कविता प्रधान मासिक था I वर्ष १८८७ में जो साप्ताहिक पत्र निकले उनमे 'आर्यावर्त', विक्टोरिया सेवक, शुभचिंतक, धर्मसभा अख़बार तथा भारतभराता उल्लेखनीय है I इन साप्तहिकों के अतिरिक्त इस वर्ष एक पाक्षिक तथा चार चार मासिक पत्र भी प्रकाशित हुए I साप्ताहिक 'भारतभराता' रीवां राज्य से महाराजकुमार बलदेव सिंह के प्रयत्न से निकला I इसमें राजनीति विषयक लेख रहते थे I कालाकांकर से 'हिंदोस्थान' जिस रूप में पहले निकला, उसी आकार-प्रकार में यह भी प्रकाशित हुआ I पत्र की लेख सामग्री तथा सम्पादन का स्तर अच्छा था I इसके संपादक बाबू भगवान सिंह थे I वर्ष १८८८ में मथुरा से 'खत्री हितकारी' और 'खत्री अधिकारी' मासिक पत्र निकले, जिनका विषय मुख्यतः जातीय उन्नति तथा सुधार रहा है I 'भारत-भगिनी' सुधारकों की मासिक पत्रिका थी I इसकी संपादक श्रीमती महादेवी सिंह थी I यह सरस्वती प्रेस प्रयाग से निकलती थी I इसका वार्षिक मूल्य एक रुपया था I यह पत्रिका बाद में लाहोर से पाक्षिक रूप में प्रकाशित होने लगी, जो वर्ष १९०६ तक निकलती रही I


वर्ष १८८९ में पांच साप्ताहिक, दो पाक्षिक तथा पांच मासिक पत्रों का प्रकाशन हुआ I इनमे अधिकतर जातीय समस्याओं और धार्मिक  प्रश्नों पर लेख-कविताओं का प्रकाशन होता था I आर्यजीवन, आरोग्यजीवन, विध्या धर्म दीपिका और सुग्राहिनी मासिक पत्रिकाएं थीं I बुद्धिप्रकाश और द्विज पत्रिका नाम के दो पाक्षिक पत्र भी निकले जिनमे विविध विषयों का प्रकाशन होता था I साप्ताहिक पत्रों में कलकत्ते से भारत दर्पण तथा भारत मार्तण्ड नाम के दो साप्ताहिक प्रकाशित होते थे I इसी वर्ष काशी से पंडित दामोदर विष्णु सप्रे ने 'मित्र' नामक साप्ताहिक पत्र निकाला I सप्रे जी के लेख भारतेंदु की हरिश्चंद्र चन्द्रिका तथा मोहन चन्द्रिका में निकलते थे I वस्तुतः सप्रे जी भारतेंदु के साहित्य-सचिव थे और उनके पुस्तकालय सरस्वती भण्डार के अध्यक्ष थे I भारतेंदु जी की पत्रिकाओं में लेखों के साथ ही वे उनका सम्पादन भी करते थे I सप्रे जी ने 'बिहार-बंधू' का सम्पादन किया था तथा पटना, बांकीपुर स्थित खडगविलास प्रेस में भी कार्य किया था I 'मित्र' के अतिरिक्त 'विद्यार्थी' नामक संस्कृत मासिक भी आप निकालते थेI


वर्ष १८९० में कलकत्ते के बंगवासी कार्यालय से 'हिन्दी बंगवासी' का प्रकाशन हुआ जिसने हिन्दी पत्रकारिता को नया मोड़ दिया I इसके संपादक श्री अमृतलाल चक्रवर्ती थे I हिन्दी में ऐसा पत्र पहले नहीं मिला था I इसमें ताजा ख़बरों के अतिरिक्त लोगों के चित्र और चरित्र भी छपते थे I इस पत्र का बिहार तथा युक्तप्रान्त में भी अच्छा प्रचार-प्रसार था I इसके सम्पादकीय मंडल में हिन्दी पत्रकारिता के तीन मूर्धन्य संपादकों ने काम किया था I इनके नाम हैं पंडित अम्बिकाप्रसाद वाजपेयी, पंडित बाबुराव विष्णु पराड़कर  तथा पंडित लक्ष्मण नारायण गर्दे I श्री हरेकृष्ण जौहर इस पत्र के प्रधान संपादक रहे हैं I इस पत्र के माध्यम से साहित्य का जहाँ प्रचार हुआ वहीँ भाषा और लेखन शैली का भी विकास हुआ I हिन्दी बंगवासी के सम्पादकीय पृष्ठ पर दो-तीन कालम लेख-टिप्पड़ियां होती थीं I युद्ध सम्बन्धी 'बांग्ला बंगवासी' में छपे लेखों के अनुवाद भी इसमें प्रकाशित होते थे I पत्र में स्थानीय समाचारों के अतिरिक्त डाक समाचार भी रहते थे I पत्र के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से इस पत्र के नये-नये प्रयोग किये और उनमें सफलता भी प्राप्त की I हिन्दी सम्बन्धी अनेक लेखमालाएं भी पत्र में निकलीं I


इसी वर्ष २० फरवरी को राजपुताना की बूंदी रियासत से 'सर्वहित' नामक पत्र प्रकाशित हुआ I यह पत्र पाक्षिक था I इसके पहले संपादक श्री रामप्रसाद शर्मा थे I बाद में इसका संपादन पंडित लज्जाराम शर्मा ने किया I यह पत्र देशी रियासतों के समाचार तथा समस्याओं पर लेख प्रकाशित करता था I इस पत्र में आपका साहित्य के अतिरिक्त सामाजिक, धार्मिक तथा कला-कौशल पत्र की लेख सामग्री भी रहती थी I कृषि विषयक स्तम्भ, हास्य-व्यंग्य की सामग्री तथा साहित्य समीक्षा के स्तम्भ भी इस पत्र में रहते थे I पत्र में समाचारों का चयन सुरुचिपूर्ण ढंग से किया जाता था I इस पत्र की नीति देश में नैतिकता तथा सांस्कृतिक जागरण के प्रचार-प्रसार की थीं I अपने समय का यह श्रेष्ठ पत्र रहा है I


वर्ष १८९२ में बम्बई से श्री गोपालराम गहमरी ने 'भारत भूषण' मासिक पत्र का सम्पादन प्रकाशन किया I 'साहित्य सुधानिधि' पत्रिका १८९४ में श्री देवकीनन्दन खत्री ने मुजफ्फरपुर से निकाली I इसके संपादक मंडल में श्री जगन्नाथदास रत्नाकर, श्री राधाकृष्णदास, श्री कार्तिक प्रसाद खत्री थे I


१८९६ में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने त्रैमासिक पत्रिका प्रकाशित की I इसके संपादकों में महामहोपाध्याय श्री सुधारक द्धिवेदी, श्री श्यामसुन्दरदास, श्री कालिदास और श्री राधाकृष्णदास थे I सन १९०७ में यह कुछ समय के लिए मासिक हुई पर बाद ने पुनः त्रैमासिक ही गयी I हिंदी में यह अपने ढंग की विशिष्ट पत्रिका रही है, जिसमें भाषा, साहित्य, अनुसंधान और समीक्षात्मक निबंध रहते हैं I इस पत्रिका से पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा, श्यामसुन्दर दास, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी और मुंशी देवीप्रसाद सम्बद्ध थे I


इस वर्ष बम्बई से श्री वेंकटेश्वर समाचार श्रेष्ठ साप्ताहिक का प्रकाशन सेठ खेमराज बजाज ने किया जिन्होनें वैदिक साहित्य तथा प्राचीन भारतीय शास्त्रों के सुलभ संस्करण प्रकाशित किये I यह पत्र हिंदी के पुराने पत्रों में है I इस पत्र में हिन्दी के श्रेष्ठ संपादकों ने संपादन कार्य किया I इसके प्रथम संपादक श्री रामदास वर्मा थे I इसके बाद बूंदी के पंडित लज्जाराम शर्मा मेहता संपादक हुए और बाद में पंडित अमृतलाल चक्रवर्ती I श्री जगन्नाथ प्रसाद शुक्ल, श्री रुद्रदत्त शर्मा, श्री गोपालराम गहमरी ने भी इस पत्र का संपादन किया I खेमराज जी चाहते थे की पराड़कर जी भी उनके पत्र में आ जाएँ पर यह संभव न हो सका I प्रथम विश्वयुद्ध में यह पत्र दैनिक पत्र हो गया था I


सन १९०० में 'सरस्वती' मासिक पत्रिका के प्रकाशन से हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास का नवीन अध्याय आरम्भ हुआ I सर्वप्रथम यह मासिक पत्रिका काशी नागरी प्रचारिणी सभा के तत्वाधीन में निकली पर बाद में इंडियन प्रेस, प्रयाग से श्री चिंतामणि घोष ने इसकी प्रकाशन व्यवस्था की I सन १९०३ में आचार्य महावीर प्रसाद द्धिवेदी ने इसका संपादन आरम्भ किया I 'सरस्वती' के प्रथम संपादक-मंडल में श्री राधाकृष्णदास, श्री कार्तिकप्रसाद खत्री, श्री जगन्नाथ रत्नाकर, श्री किशोरी लाल गोस्वामी तथा श्री श्यामसुन्दर दास थे I 'सरस्वती' का सम्पादन अंतिम बीस वर्षों तक पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी ने किया I अस्सी वर्षों तक यह पत्रिका निकली I


सन १९०३ में कलकत्ता से 'हितवार्ता' का प्रकाशन हुआ I इसके प्रथम संपादकों में पंडित रुद्रदत्त जी थे I बाद में श्री जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी ने भी इसका संपादन किया I सन १९०७ में पंडित बाबुराव विष्णु पराड़कर इसके संपादक हुए I आपके सम्पादनकाल में इस पत्र के माध्यम से हिन्दी भाषा, व्याकरण तथा प्रयोग सम्बन्धी अनेक लेख-मालाओं का प्रकास्काण हुआ जिनके कारण पत्रकारिता के क्षेत्र के क्षेत्र में इसकी विशेष प्रसिद्धि हुई I पंडित गोविन्द नारायण मिश्र की 'विभक्ति-विचार' तथा 'प्राकृत-विचार' सम्बन्धी लेखमालाएं इसी पत्रिका में प्रकाशित हुईं I प्रख्यात पत्रकार श्री देउस्कर जी ने विभक्ति सम्बन्धी अपने महत्वपूर्ण विचार 'हितवार्ता' के माध्यम से ही हिन्दी जगत के समक्ष रखे I इस दृष्टि से हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में 'हितवार्ता' का विशेष स्थान है I


हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में सन १९०७  इसलिए महत्वपूर्ण है की इसी वर्ष महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने प्रयाग से 'अभ्युदय' का सम्पादन प्रकाशन किया I 'अभ्युदय' के प्रकाशन से हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में एक अभिनव युग का आरम्भ हुआ I 'हिंदोस्थान' के बाद महामना मालवीय जी ने 'अभ्युदय' में राष्ट्रीय उत्थान तथा राजनीतिक, आर्थिंक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक उत्कर्ष एंव वैचारिक क्रान्ति की जो योजनाएं रखीं, उनसे देश में राष्ट्रीय चेतना तथा जागरण का नवीन युग आरम्भ हुआ I


मालवीय जी के सार्वजनिक क्षेत्र में व्यस्त हो जाने पर श्री पुरुषोत्तम दास टंडन, श्री सत्यानन्द जोशी, पंडित कृष्णकांत मालवीय, श्री वेंकटेश नारायण तिवारी और श्री पद्मकांत मालवीय ने इस पत्र का संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता का उच्च मानदंड स्थापित किया I इस पत्र के यशस्वी संपादकों ने हिन्दी पत्रकारिता के मालवीय युग को स्वर्णिम शिखर ताल पहुँचाने में असाधारण सफलता प्राप्त की I सन १९१४ में 'अभ्युदय' पहले अर्धसाप्ताहिक और बाद में १९१८ तक दैनिक रूप में भी प्रकाशित हुआ I इस पत्र में पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी और श्री भगवानदास हाल्ना ने भी संपादन कार्य किया I 'अभ्युदय' का प्रकाशन पंडित पद्मकांत मालवीय ने द्वितीय युद्ध के बाद तक किया I सन १९६१ में महामना मालवीय की जन्मशती के अवसर पर आपने मालवीय जी के संमरणों तथा लेखों का संग्रह भी संपादित-प्रकाशित  किया I जीवन की अंतिम वर्षों में प्रयाग स्थित पुनप्पा मार्ग में स्थित आपके निवास में मुझे पंडित पद्मकांत मालवीय से मिलने तथा हिन्दी पत्रकारिता सम्बन्धी चर्चा करने तथा दुर्लभ और उनकी अत्यंत मूल्यवान सामग्री देखने का सौभाग्य मिला था I


इसी वर्ष लोकमान्य तिलक के प्रसिद्द 'केसरी' पत्र के लेखों का अनुवाद 'हिन्दी केसरी' के रूप में नागपुर से डॉक्टर बालकृष्ण शिवराम मुंज्जे ने निकला I 'हिन्दी केसरी' के संपादक पंडित नाधवराव सप्रे थे I आपके सहायकों में पंडित जगन्नाथ शुक्ल तथा श्री लक्ष्मीधर बाजपेयी भी थे I १९०७ में 'वे उपाय टिकाऊ नहीं हैं' शीर्षक लेख के कारण पत्र पर राजद्रोह का मुक़दमा चला I पत्र के संपादक सप्रे जी राजद्रोह में गिरफ्तार हुए I 'हिन्दी केसरी' १९०९ में बंद हो गया I


प्रसिद्द विद्वान और पत्रकार पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्र ने 'उचित वक्ता' के बाद 'मारवाड़ी-बंधू' पत्र का सम्पादन-प्रकाशन किया I इस पत्र की आर्थिक सहायता श्री रूढ़मल्ल गोयनका ने की थी I इस पत्र में पंडित अम्बिका प्रसाद वाजपेयी के भी लेख प्रकाशित होते थे I काबुल के अमीर के भारत आगमन पर उनके सम्मान में दिल्ली के मुसलमानों ने १०० गायों की क़ुरबानी करने की सुचना निकाली थी I इस पर अमीर ने कहा की मैं हिन्दुओं का दिल नहीं दुखाना चाहता I इसलिए एक गाय की कुर्बानी नहीं होनी चाहिए I पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्र ने इस समाचार को प्रकाशित कर इसका व्यापक प्रचार प्रसार किया था I पंडित अम्बिका प्रसाद वाजपेयी के संपादकत्व में प्रकाशित 'नरसिंह' मासिक का विशेष महत्व है I कारण इस पत्र में राष्ट्रीय नेताओं के चित्र तथा जीवनचरित्र प्रकाशित होते थे I प्रत्येक अंक में इस चित्र का प्रकाशन इस पत्र की विशेषता थी I इसमें लाला लाजपत राय, ब्रह्मबान्धव उपाध्याय, रासबिहारी घोष, अरविन्द घोष, लोकमान्य तिलक, माधवराव सप्रे आदि के चित्र प्रकाशित हुए थे I


सन १९०९ में प्रयाग से पंडित सुन्दरलाल जी ने 'कर्मयोगी' पाक्षिक का सम्पादन किया I यह उग्र विचारों का समर्थक था I पाक्षिक के बाद में यह साप्ताहिक हो गया I 'सनातनधर्म' साप्ताहिक कलकत्ते से प्रकाशित हुआ जिसका आरम्भ में सम्पादन पंडित अम्बिकाप्रसाद वाजपेयी ने किया I इस वर्ष प्रकाशित पत्रों में 'भारतोदय' का नाम उल्लेखनीय है जिसके सम्पादक प्रख्यात साहित्यकार पंडित पद्मसिंह शर्मा और पंडित नरदेव शास्त्री वेदतीर्थ थे I पंडित द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी 'श्री राघवेन्द्र' के सम्पादक थे I इस पत्र के बंद होने के बाद चतुर्वेदी जी ने 'यादवेन्द्र' मासिक पत्र निकाला I


सन १९१० में कानपुर से निकला श्री गणेशशंकर विद्यार्थी का साप्ताहिक 'प्रताप' हिन्दी पत्रकारिता का श्रेष्ठ पत्र था I यह युवकों का पत्र था और इसमें बड़ी तेजस्विता थी I कानपुर में हिन्दी पत्रकारिता को अग्रसर करने में गणेश जी और उनके 'प्रताप' का महान योगदान है I 'प्रताप' में अनेक क्रांतिकारी भी कार्य करते थे जिनमें सरदार भगत सिंह का नाम उल्लेख्य है I विद्यार्थीजी के इस पत्र का जो प्रभाव देश के राष्ट्रीय जागरण तथा स्वाधीनता आंदोलन पर पड़ा, वह चिरस्मरणीय रहेगा I हिन्दी के वयोवृद्ध सम्पादक पंडित जगन्नाथ प्रसाद शुक्ल ने 'हिन्दी केसरी' तथा 'वेंकटेश्वर समाचार' के बाद प्रयाग से 'सुधानिधि' मासिक पत्र निकाला I इसमें आयुर्वेद सम्बन्धी लेख रहते थे I काशी से आर्य कुमार परिषद के तत्वाधान में 'नवजीवन' पत्र निकला जिसके संपादक डॉक्टर केशवदेव शास्त्री थे I यह पत्र १९१९ तक प्रकाशित होता रहा I प्रख्यात पत्रकार पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी का प्रथम लेख इसी पत्र में प्रकाशित हुआ था I


इस प्रकार सन १८८५ से १९१० के पचीस वर्षों की हिन्दी पत्रकारिता नयी जागृति तथा राष्ट्रीय चेतना के विकसित होते रूप की परिचायक है I इस अवधि में अनेक श्रेष्ठ साप्ताहिक तथा मासिक पत्रों का प्रकाशन हुआ I महामना मालवीय की प्रेरणा से ही अभ्युदय प्रेस से 'मर्यादा' मासिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ जिसके संपादक पंडित कृष्णकांत मालवीय थे I बाद में यह मासिक पत्रिका राष्ट्ररत्न श्री शिवप्रसाद गुप्त ने ज्ञानमण्डल काशी से प्रकाशित की जिसके संपादक श्री सम्पूर्णानंद जी और कुछ समय के लिए श्री प्रेमचंद जी रहे हैं I 'मर्यादा' का अंतिम अंक 'प्रवासी विशेषांक' निकला जिसके विशेष संपादक पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी थे I इस अवधि में अनेक पत्र 'हिंदोस्थान' के आकार-प्रकार तथा उसी की संपादन शैली का अनुकरण करते हुए प्रकाशित हुए I यह स्पष्तः पत्रकारिता के मालवीय-युग का प्रभाव रहा है I


महामना मालवीय ने न केवल आधुनिक हिन्दी पत्रकारिता की नींव ही डाली अपितु विदेशी शासन की विरोध-नीति और कठोर नियंत्रण की निंदा की I भारतीय समाचारपत्रों के प्रति सरकार के कठोर नियंत्रण को देखकर मालवीय जी ने अखिल भारतीय संपादक सम्मलेन का आयोजन सन १९०८ में राजा रामपाल सिंह की अध्यक्षता में किया था I इस सम्मलेन के स्वागताध्यक्ष स्वंय महामना मालवीय थे I इस सम्मलेन में आपने भाषण में कहा था- 'विदेशी सरकार अपनी दमन नीति को अत्यधिक व्यापक बनाने के लिए प्रेस एक्ट और न्यूज़पेपर एक्ट ऐसे प्राविधान करने जा रही है, जिससे इस देश में समाचार-पत्रों की स्वाधीनता समाप्त हो जाएगी I यदि भारतीय समाचारपत्रों की स्वाधीनता के इस दमन का मुकाबला न किया गया तो भारतीय समाचारपत्रों का भविष्य खतरे में पड़ जायेगा' I इस प्रकार प्रेस समाचारपत्रों की स्वतंत्रता के लिए आवाज़ उठाने वालों में मालवीय जी अग्रगण्य थे I आपने हिन्दी पत्रकारिता के साथ-साथ अंग्रेजी पत्रकारिता के विकास में महत्वपूर्ण योग दिया I देश के अन्य प्रान्तों में राष्ट्रीय विचारों तथा चेतना का प्रसार करने के निमित्त आपने एक अंग्रेजी पत्र की स्थापना की आवश्यकता समझी I इस निमित्त पंडित मोतीलाल नेहरू के सहयोग से आपने विजयादशमी २४ नवम्बर, १९०९ को 'लीडर' का प्रकाशन आरम्भ कराया I 'लीडर' ने देश को दो वरेण्य संपादक दिए जिनके नाम हैं- श्री नगेंद्रनाथ गुप्त और श्री सी. वाई. चिंतामणि I


पत्रकारिता के उच्च मानदंड तथा सिद्धांतों का पालन महामना मालवीय आवश्यक मानते थे I लेखों का संपादन आप बड़ी सावधानी से करते थे I 'अभ्युदय' में आप आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी से लेख लिखने का आग्रह करते थे किन्तु उनके लेखों में भी आवश्यक संशोधन-परिवर्तन करते थे I एक बार 'अभ्युदय' में सिद्धांत विरोधी लेख छप गया I इस पर महामना मालवीय ने २७ जून, १९१४ को पत्र के तत्कालीन संपादक श्री कृष्णकांत मालवीय को जो पत्र लिखा, उससे पत्रकारिता के आदर्शों एंव सिद्धांतों सम्बन्धी मालवीय जी के उच्च विचारों का परिचय मिलता है-


सन १९०७ में पंजाब के प्रसिद्द दैनिक पत्र 'पंजाबी' पर सरकार ने मुक़दमा चलाया था I 'अभ्युदय' में महामना मालवीय ने इस पर विस्तृत टिप्पड़ी लिख कर अंग्रेजी शासन नीति का विरोध तथा पत्र के संपादक श्री आठवले और श्री रामचन्द्र का पक्ष समर्थन किया था I आपने लिखा- संपादक ने अपना संपादकीय लेख लिखकर एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक मामले के ऊपर सरकार और जनता दोनों का ध्यान दिलाया है I यदि ऐसे मुकदमें में संपादक को सजा हुई तो समाचारपत्रों की स्वतंत्रता को बड़ी बाधा पहुंचेगी I संतोष हमें इस बात से है 'पंजाबी' के संपादक श्री आठवले ने अपने कर्तव्य-पालन में हर प्रकार का साहस और दृढ़ता दिखाई है I

 

इस प्रकार महामना मालवीय ने पत्रकारिता के उच्च आदर्शों के पालन का सदा ध्यान रखा और पत्रों की स्वतंत्रता के लिए भी निर्भीकता और साहस के साथ आवाज़ बुलंद की I

Mahamana Madan Mohan Malaviya