Mahamana Madan Mohan Malaviya

Mahamana Madan Mohan Malaviya

शकुन्तला और पोर्षिया का अभिनय
 


मालवीय जी विद्यार्थी-जीवन में अभिनय भी बहुत सुन्दर करते थे। ष्आर्य नाटक-मण्डलीष्  के तत्त्वावधान में षकुन्तला नाटक खेला गया। उस नाटक में मालवीय जी ने षकुन्तला का अभिनय किया। उन्होंने षकुन्तला का इतना सुन्दर अभिनय किया कि सभी दर्षक आनन्द में आत्मविभोर हो उठे। इसी प्रकार काॅलेज में एक बार ष्षेक्सपियरष्  कृत ष्मर्चेण्ट आफ वेनिसष् नामक नाटक खेला गया। मालवीय जी ने उस नाटक में ष्पोर्षियाष् का बड़ा सफल अभिनय किया। उनके अभिनय में ष्पोर्षियाष् के सात्तिवक गुण साकार हो उठे थे। नाटक के देखने वालों का कथन था कि यदि कोई अंगे्रजी महिला भी ष्पोर्षियाष् का अभिनय करती, तो उतनी सुन्दरता से न कर पाती।



उन्होंने काॅलेज में एक वाद-विवाद-समिति की संस्थापना की। इस समिति में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक विशयों पर वादविवाद हुआ करते थे। सौभाग्य से संस्कृत के प्राध्यापक, महामहोपाध्याय पण्डित आदित्यराम भट्टाचार्य उन्हें आदर्ष गुरु के रूप् में प्राप्त हुए। मालवीय जी के निर्माण में महामहोपाध्याय भट्टाचाय जी बहुत बड़ा हाथ रहा। उन्हीं आदर्ष गुरु की प्रेरणा से मालवीय जी ने हिन्दू-समाज की स्थापना की। इस संस्था में उन्होंने बडे़-बडे़ पुरुशों को खींच लिया।



मालवीय जी ने सभी प्रकार की साधना अपने विद्यार्थी-जीवन में की। षारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक सभी प्रकार की साधनाओं से युक्त होकर वे जीवन के व्यावहारिक क्षेत्र में उतरे। उन्होंने अपनी साधना और तपच्श्रर्या के बलपर अलौकिक षक्ति अर्जित की। इसी के फल-स्वरूप जहाँ भी रहे ष्सिंहष् के समान निर्भय रहे। मालवीय जी का जीवन किसी एक क्षेत्र में सीमित न रह सका। वह सदैव असीमता की ओर बढ़ा। उन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों को अपने कार्य का माध्यम बनाया। वे अध्यापक बने, पत्रकार बने, वकील बने, धर्म सुधारक बने, राजनीतिक और सामाजिक नेता बंने।



बी0 ए0 उत्तीर्ण करने के पष्चात् मालवीय जी पचास रुपये मासिक पर गवर्नमेण्ट हाई स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गये। मालवीय जी बहुत सफल अध्यापक सिद्ध हुए। अध्यापकों के लिये तीन गुणों का होना आवष्यक है- सच्चरित्रता, मृदुभाशिता और अपने विशय का पूर्ण ज्ञान। मालवीय जी तीनों गुणों से ओतप्रोत थे। दो ही वर्शों में इनका वेतन पचहत्तर रुपए हो गया। स्कूल में अध्यापन करते समय एक बार की घटना चिरस्मरणीय रहेगी। एक विद्यार्थी दूसरे विद्यार्थी की नकल कर रहा था। मालवीय जी ने ताड़ लिया और उसी क्षण उसे कमरे से निकाल दिया। उस लड़के ने मालवीय जी को धमकी दी कि कभी समझ लिया जायगा। पर मालवीय जी उसकी गीदड़भपकी से रंचमात्र भी आतंकित नहीं हुए। बहुतों ने मालवीय जी को समझाया कि आप पैदल न जाया करें, इक्के पर जायँ। पर उन्होंने उत्तर दिया कि हमारे क्या हाथ नहीं है; हम पैदल ही जाँयगे। वे बराबर पैदल ही जाते रहे। मालवीय जी को छोड़ने का तो उसे साहस नहीं हुआ पर जिस लड़के की उत्तरपुस्तक से वह नकल कर रहा था, उसे दुश्ट ने पकड़ कर दिन भर बैठाये रखा। बेचारे को कतिपय लोगों ने मुक्त किया पर मालवीय जी के व्यक्तित्व का उस दुश्ट लड़के पर इतना प्रभाव पड़ा कि उसने इनके पैरों पर गिर कर क्षमा माँगी और अपनी भूल स्वीकार की।

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